धर्म। इस वर्ष 14 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जाएगी। मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान और दान को बहुत ही ज्यादा शुभ माना गया है। इस दिन किए गए गंगा स्नान को महास्नान माना जाता है। इस पर्व के साथ कई धार्मिक मान्यताएं और सांस्कृतिक परंपराएं जुड़ी हुई हैं। इस पर्व को देश के हर हिस्से में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। यूपी-बिहार में मकर संक्रांति को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। इस दिन दही-चूड़ा, खिचड़ी, तिल के लड्डू और तिल की गजक खाने का विशेष महत्व है। खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश में दही-चूड़ा बड़े ही चाव से खाया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि मकर संक्रांति के दिन दही-चूड़ा और खिचड़ी क्यों खाते हैं? तो आइए जानते हैं इस दिन दही-चूड़ा और खिचड़ी खाने की परंपरा और महत्व के बारे में ।
क्यों खाया जाता हैं दही-चूड़ा और खिचड़ी :-
मकर संक्रांति के दिन मुख्य भोजन के तौर पर दही चूड़ा के साथ तिलकुट और खिचड़ी खाने की मान्यता है। धार्मिक दृष्टि से इस दिन इन चीजों को खाना बेहद शुभ होता है। इससे सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। इसी समय धान की कटाई होती है और नए चावल निकलते हैं। मान्यता है कि ताजा-ताजा धान की कटाई होने के बाद चावल को पकाकर उसे खिचड़ी के रूप में सबसे पहले सूर्य देवता को भोग लगाया जाता है। इससे सूर्य देवता आशीर्वाद देते हैं।
इसके अलावा यूपी और बिहार में दही चूड़ा का भी भोग सूर्य देवता को लगाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इससे रिश्तों में मजबूती आती है। दही-चूड़ा और खिचड़ी दोस्तों को और रिश्तेदारों को दिया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन दही-चूड़ा और खिचड़ी खाने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन दही चूड़ा और खिचड़ी का दान भी शुभ माना जाता है।
स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद
दही चूड़ा और खिचड़ी को लेकर धार्मिक मान्यता के अलावा वैज्ञानिक महत्व भी होता है। दही चूड़ा को हेल्दी नाश्ता माना जाता है। दही, चूड़ा और खिचड़ी को सुपाच्य भोजन माना जाता है। ये आसानी से पच जाते हैं। साथ ही दही पाचन क्रियाओं को ठीक रखने का काम भी करता है। वहीं चूड़ा चावल से बनता है। इसमें फाइबर की मात्रा बहुत अधिक होती है, जो पाचन शक्ति को दुरुस्त करता है।