पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, सात वर्ष की आयु में सात कोस का गोवर्धन, सात दिन के लिये अंगुली पर उठाया, इसका आध्यात्मिक आशय है कि भजन के लिये, शरणागति के लिये, मुक्ति के लिये भी दिन सात ही हैं। भगवान् कृष्ण की अवस्था सात वर्ष की थी और गिरिराज गोवर्धन भी सात कोस के हैं और दिन भी सात हैं, जिनमें गोवर्धन को भगवान् ने अंगुली पर उठाकर रखा। गोवर्धन पर्वत की बहुत महिमा है। श्रीगोवर्धन का एक पत्थर का टुकड़ा एक ब्राह्मण ले जा रहा था कि घर जाकर इस शालिग्राम की पूजा करूंगा। रास्ते में एक विकराल प्रेत आ गया। उसने लाखों पाप किये हुए थे जिसके कारण उसे प्रेत की योनि मिली हुई थी और वह आने-जाने वालों को सताता और मार देता था। ब्राह्मण जब वहां से निकला , प्रेत उस पर झपटा और ब्राह्मण डर गया। डर कर उसने वही गोवर्धन का पत्थर, प्रेत को दे मारा। पत्थर के स्पर्श होते ही प्रेत का प्रेत शरीर छूट गया और वह दिव्य श्रीकृष्ण के रूप में प्रगट हो गया। प्रेत रो पड़ा, बोला देवता! तुमने गोवर्धन के एक कण से मेरा स्पर्श करा दिया, इससे मेरे लाखों जन्मों के पाप धुल गये और मैं कृष्ण स्वरूप बनकर गोलोक जा रहा हूं। गोवर्धन का एक-एक कण साक्षात् श्री राधा कृष्ण है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा,(उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)