पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, मौन अर्थात् वाणी पर पूर्ण संयम। योग साधना में मौन को एक प्रबल शक्ति के रूप में माना गया है।” मौनं आत्मविमर्शनम् ” मौन मानव में अलौकिक ऊर्जा का संचार करता है। मौन वाणी का तप है। यदि बोलना लोहा है तो कम बोलना चांदी है और मौन सोना है।
भागवत में भगवान ने कहा है कि भजन और साधना में आने वाले विघ्नों और बाधाओं पर विजय पाने के लिये मौन सर्वश्रेष्ठ शस्त्र है। ऐसा वचन मिलता है- धातुक्षयात्तु वाक्क्षयः गरीयसी। अर्थात धातु क्षय से जो ऊर्जा क्षय (नष्ट) होती है, उससे अधिक हानि वाणी क्षय से बताई गई है। इसके अतिरिक्त भी मौन के कई व्यावहारिक लाभ हैं जैसे मौन से झूठ बोलने से बचा जा सकता है।
बोलने में या तर्क करने में शक्ति और समय का अपव्यय होता है। बोलने वाले को सुनने वाला चाहिए तो वह एक नहीं दो का समय बर्बाद करता है। अधिक वाचाल अनादर भी पाते हैं जबकि मौन रहने वाले के कई दोष स्वतः नष्ट हो जाते हैं। भागवत में आता है कि- मौन का दूसरा अर्थ चिंतन भी है अर्थात् आत्मविचार। मौन साधक जीवन, स्वयं और प्रभु पर शांत होकर विचार करता है।
इस तरह मौन साधना पथ की एक सहायक शक्ति ही नहीं प्रबल शक्ति है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम,
श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)