विपरीत परिस्थितियों को धैर्यपूर्वक ग्रहण करके शान्त रहना ही है धृति: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्री कृष्ण- ‘जिह्वोपस्थ जपो धृतिः।’ धृति का अर्थ धैर्य है। विपरीत परिस्थितियों को धैर्यपूर्वक ग्रहण करके शान्त रहना ही धृति है। मन किसी भी हालत में विचलित न होने पाये। कवि कालिदास ने कहा- विकारहेतौ सति विक्रयन्ते येषां न चेतांसि त एव धीराः भगवान् श्री कृष्ण का संदेश है कि जो रसना और वासना के वेग को रोक लेता है वह धैर्यवान् है। यूं तो सभी इंद्रिय विषय जीव को कुप्रभावित करते हैं, पर प्रमुख ये दो हैं। रसना और वासना पर काबू पा लेने से शेष विषय स्वतः शांत हो जाते हैं। शत्रु को देखकर और हानि देखकर जो न घबराये वह धैर्यवान है। जिह्वा और ज्ञानेंद्रियों पर नियंत्रण जरूरी है। अवधूत दत्तात्रेय जी ने रसना पर विजय पाने वाले को धैर्यवान् कहा, तो गीता में भगवान् ने अर्जुन को कहा कि जिसने मृत्यु से पूर्व काम और क्रोध को रोक लिया है वही सुखी है। धैर्यवान है, धैर्यवान् बनो, दुःख में तड़पोमती, सुख में फूलोंमती, प्राण जाये, मगर नाम भूलोमती। मुरली वाले को मन से रीझाते चलो, कृष्ण गोविंद गोपाल गाते चलो।। नाम जप से ही लोगों ने पाईगती, भक्तों ने तो इसी से करी वीनती। नाम धन का खजाना बढ़ाते चलो, कृष्ण गोविंद गोपाल गाते चलो। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

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