प्राणों के आयाम से होता है व्यायाम: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्री उद्धव जी ने श्रीमद्भागवत के ग्यारहवें स्कंध में भगवान् श्रीकृष्ण से प्रश्न किया कि विश्व में सबसे बड़ा बल क्या है? भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-‘ प्राणायामः परं बलम् ।’ अर्थात् प्राणायाम सबसे बड़ा बल है। प्राणों के आयाम से व्यायाम होता है। शरीर के व्यायाम से शरीर की शक्ति बढ़ती है और प्राणों के आयाम से प्राणों की शक्ति बढ़ती है। जैसे लोहार अपनी धोकनीं में हवा भर, तीव्र अग्नि प्रज्वलित कर लोहे के जंग और मैल को जलाकर मिटा देता है और लोहे को शुद्ध बना देता है। इसी प्रकार प्राणायाम व्यक्ति के पापों का मैल हटाकर उसे निर्मल और शुद्ध बना देता है। श्रीमद्भागवत महापुराण में कहा गया है-‘ प्राणायाम भयी दहिर दोषाण ‘ अर्थात् प्राणायाम के द्वारा शरीर के दोषों का नाश होता है। सर्कस में पहलवान अपनी छाती पर हाथी चढ़ा लेते हैं,यह प्राणायाम की ही शक्ति होती है। वाहन में लगे टायरों की ट्यूब में भरी हवा से, वाहन कई टन भार एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचा देता है। यदि ट्यूबों की हवा निकल जाये तो वही ट्रक खाली होने पर भी कुछ कदम नहीं चल सकता। फेफड़ों में भरी वायू का भी यही चमत्कार देखा जा सकता है। यह प्राणायाम का प्रताप है जो शारीरिक,आध्यात्मिक और आर्थिक शक्ति को बढ़ाता है। प्राणायाम को नियमित अपनाने वालों को हृदय या फेफड़ों के रोग नहीं होते। हृदय गति रुकने का प्रश्न नहीं होता।शरीर की नाड़ियों में प्राण वायु का प्रवेश अंग-अंग में स्फूर्ति भर देता है, रक्त का संचार नियमित करता है और प्राणों को अद्भुत बल देता है। वायु ही प्राण हैं और प्राण ही वायु है। जब तक प्राण गतिशील है श्वास चल रही है और व्यक्ति जीवित है और जब यह बंद होती है तो उसे मृतक घोषित कर दिया जाता है। प्राणायाम के ज्ञाता गुरु से ही सीख कर प्राणायाम करना चाहिये। शास्त्रों से प्राप्त विधि को संक्षेप में श्रीमद्भागवत महापुराण में बताया गया है। व्यक्ति खाली पेट सीधा बैठे। रीड की हड्डी और सिर भी सीधा रखे।दस बार पूरक, रेचक, फिर तीन बार पूरक-कुंभक-रेचक करे। फिर दस बार पूरक रेचक करे। श्वास अंदर खींचना पूरक है। वायु को भीतर रोकना कुंभक और बाहर निकालना रेचक है। बाह्य कुंभक का अर्थ प्राणवायु को बाहर रोकना है।प्रणाम अठारह प्रकार के हैं। भस्त्रिका प्राणायाम, लोहार की धौकनी की भांति, प्रणाम वायू जल्दी-जल्दी खींचने और बाहर निकालने को कहते हैं। श्रीमद्भागवत महापुराण में भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि यदि आदमी तीन समय प्रातः, मध्यान्ह और सायं प्राणायाम करे तो एक मास में लाभ का अनुभव होता है। प्राणायाम से मन स्थिर होता है और स्थिर मन से ही प्रभु का भजन अथवा साधना हो पाती है। योग के आठ अंगों (अष्टांग- योग) में प्रणाम चौथा अंग है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना।श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *