नई दिल्ली। मथुरा श्री कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद जमीन विवाद मामले में आज इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया। हाई कोर्ट ने शाही ईदगाह ट्रस्ट और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की याचिकाओं को निस्तारित कर दिया है। हाईकोर्ट ने सिविल जज के फैसले के खिलाफ मथुरा के जिला जज को नए सिरे से सुनवाई कर आदेश पारित करने का आदेश दिया है। अब सभी पक्षकारों को मथुरा के जिला जज के यहां नए सिरे से अपनी दलीलें पेश करनी होगी।
न्यायालय ने सुनवाई करते हुए पूरे केस को मथुरा के जिला जज को रिमांड बैक कर दिया है। सिविल कोर्ट ने जिस सिविल सूट को खारिज कर दिया था, उस फैसले के खिलाफ श्रीकृष्ण विराजमान ने जिला जज के यहां रिवीजन अर्जी दाखिल की थी। इसके बाद जिला जज ने सिविल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया था और फिर से सुनवाई का आदेश पारित किया था। जिला जज के इसी आदेश को ईदगाह ट्रस्ट कमेटी और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने दोनों पक्षों की बहस पूरी होने के बाद 17 अप्रैल को फैसला सुरक्षित कर लिया था।
मालूम हो कि याचिका में 20 जुलाई 1973 के फैसले को रद्द करने और 13.37 एकड़ कटरा केशव देव की जमीन को श्रीकृष्ण विराजमान के नाम घोषित किए जाने की मांग है। जस्टिस प्रकाश पाडिया की सिंगल बेंच ने फैसला सुनाया है। बता दें कि मथुरा का विवाद भी कुछ अयोध्या की ही तरह है। हिंदू धर्म के लोगों का दावा है कि 1670 में मथुरा में औरंगजेब ने भगवान केशवदेव का मंदिर तोड़ने का फरमान जारी किया था। इसके बाद मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद बना दी गई।
मथुरा का ये विवाद कुल 13.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हकड़ से जुड़ा हुआ है। दरअसल, श्रीकृष्ण जन्मस्थान के पास 10.9 एकड़ जमीन का मालिकाना हक है। जबकि ढाई एकड़ जमीन का मालिकाना हक शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। हिंदू पक्ष शाही ईदगाह मस्जिद को अवैध तरीके से कब्जा करके बनाया गया ढांचा बताता है और इस जमीन पर भी दावा किया गया है। हिंदू पक्ष की तरफ से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने और ये जमीन भी श्री कृष्ण जन्मस्थान को देने की मांग की गई है।