पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्री नरसी भगत भगवान शंकर की शरण लिये, भगवान शंकर ने कहा वरदान मांगो, नरसी भगत ने कहा प्रभु आपको जो सबसे ज्यादा प्रिय हो वही मुझे दे दो, तब भगवान शंकर भगवान राधा-कृष्ण के नित्य राशि में नरसी भगत को लेकर के गये। नरसी भगत का पिछले जन्म-जन्मांतर से भगवान राधा-कृष्ण की भक्ति का संस्कार था।इसीलिए भगवान शंकर उन्हें भगवान राधा-कृष्ण के चरणों में पहुंचा दिये। हम आप अपने जीवन में जो कुछ करते हैं उसका संस्कार हमारे साथ अगले जन्म में भी चला जाता है। जीवन समाप्त होता है उसी के साथ सब कुछ समाप्त हो जाता है, लेकिन कर्म बीज के रूप में आत्मा के साथ अगले जन्म में भी जाता है। इसलिए व्यक्ति को अच्छे-अच्छे कर्म करते रहना चाहिए, इस जन्म में भी मंगल होगा और उस अच्छे कर्मों का संस्कार अगले जन्म में भी हमसे अच्छा कर्म करवा कर हमारा मंगल करेगा। भगवान् शंकर ने नरसी भक्त को मशाल दिखलाने की सेवा महारास में प्रदान की। जहां भगवान राधा-कृष्ण की शोभा को देखकर भक्त नरसी अत्यंत आनंदित हुए। इसी बीच नंदलाल जी की दृष्टि इनके ऊपर पड़ी तो आपने जान लिया कि यह कोई नवीन भक्त आज रास में आया है। श्री ठाकुर जी ने अनुभव करके जान लिया कि यह शिवजी के साथ आया है। भगवान् शिव ने मीठी मुस्कान और संकेत से जनाया कि हमारे साथ आया है। आप कृपया अपने परिकरों में इन्हें शामिल करें, सुंदर महारास का दर्शन कराकर श्री शिवजी चाहते थे कि अब मैं यहां से इन्हें ले जाऊं। परंतु श्री नरसी जी चाहते थे कि मैं अपने प्राणों को न्यौछावर कर दूं। तब श्री कृष्ण ने कुछ समीप आकर नरसी को समझाया कि आप यहां से जाओ और मेरे इस भक्ति रूप का दर्शन करते रहना। जब जहां मेरा स्मरण करोगे तब प्रकट होकर मैं तुम्हें दर्शन दूंगा। नरसिंह भक्त महारास से वापस अपने घर आ गये, लेकिन उनके मन में भगवान राधा-कृष्ण के दर्शन की अत्यंत लालसा बनी रहती थी। भक्ति में ईश्वर आराधना उपासना के प्रति उत्साह बना रहना, यही सुदृढ़ भक्ति का संकेत है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा,(उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जि
ला-अजमेर (राजस्थान)