पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, ।।सत्यम् शिवम् सुंदरम् मेरे ईश्वर।। भगवान का सौंदर्य ऐसा है कि मनुष्य की बात तो क्या, पशु-पक्षी भी मुग्ध हो जाते हैं। भगवान श्री राम जब लंका जाने लगे और पुल पर खड़े हुए तो हजारों हजार बड़े-बड़े मगरमच्छ, कछुए, मछलियां एक दूसरे से सट कर खड़े हो गए, जो पुल जैसा बन गए थे। एक पत्थर का पुल बना था दूसरा जलचर जीवों का पुल बन गया। पूज्य श्री गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज लिखते हैं- प्रभुहिं बिलोकहिं टरहिं न टारे। मन हर्षित सब भये सखारे।।
वानर उनके ऊपर उछल रहे हैं, कूद रहे हैं लेकिन जलकर जीव जरा सा भी हिल नहीं रहे हैं। उनकी दृष्टि श्रीराम की ओर लगी है। देखन कहुँ प्रभु करुणा कंदा। प्रगट भये सब जलचर वृंदा।। तिन्ह की ओट न देखिअ बारी। मगन भये हरि रुप निहारी।। ‘मगन भाये हरि रूप निहारी’ और ‘टरहिं न टारे’ वे प्रभु के सुंदर शोभा में ऐसे मगन हो गये कि हिलाने से भी हिल नहीं रहे। मन और इंद्रियों का प्रभाव जब तक संसार की तरफ चल रहा है, तब तक ही अशांति रहती है। जब मन भगवान में लग गया फिर सारी अशांति समाप्त हो जाती है।
भगवान की सुंदर शोभा, भगवान की सुंदर लीला देख सुन करके स्वभाव से चलायमान मन स्थिर हो जाता है और साधना के लिए यह अति आवश्यक है। मन के संदर्भ में दो बातें अति आवश्यक है, पहली बात है कि मन पवित्र हो जाये और दूसरी बात है कि मन ही स्थिर हो जाये। भगवान की कथा श्रवण करने से मन पवित्र होता है और भगवान का दर्शन करने से मन स्थिर हो जाता है। मंदिर में भगवान् का विग्रह बिल्कुल सीधा खड़ा दर्शन करने को मिलता है।
जब हम मंदिर नित्य भगवान का दर्शन करने जाते हैं और अपने मन को भगवान के विग्रह से जोड़ते हैं तो धीरे-धीरे अत्यंत चलायमान मन भी बिल्कुल सीधा और स्थिर हो जाता है। मन की मलिनता का मुख्य कारण है, संसार की बुराइयों का चिंतन करना और मन की चंचलता का मुख्य कारण है चंचल चलायमान संसार में अपने मन को लगाए रखना। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)