Nag Panchami 2024: सावन का महिना भगवान भोलेनाथ के लिए बेहद ही शुभ होता है. सावन के महिने में ही नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है, जिस दिन भगवान शिव के गले के आभूषण नाग देव की पूजा की जाती है जिससे भगवान शिव और नाग देव दोनो कर आशीर्वाद प्राप्त होता है.
आपको बता दें कि नाग पंचमी का त्योहार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग देवता माने गए हैं. नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा, व्रत रखने और कथा पढ़ने से व्यक्ति को कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है, भय दूर होता है और परिवार की रक्षा होती है.
नाग पंचमी की कथा पूजन विधि
नागपंचमी का त्योहार भगवान शिव के गले के आभूषण एवं प्रिय नाग देवता की पूजा के लिए समर्पित है. मान्यता के अनुसार, नाग देव की पूजा के लिए घर के दरवाजे के दोनों तरफ नाग की आठ आकृतियां बनाकर हल्दी, रोली, चावल, घी, कच्चा दूध, फूल एवं जल चढ़ाकर नाग देवता की पूजा करें. इस दिन एक दिन पूर्व बनाए गए भोजन का भोग लगाने का विधान है. शिवलय में नाग देव की पूजा के बाद उनकी आरती करें और वहीं बैठ कर नागपंचमी की कथा पढ़ें.
मान्यता है कि नागपंचमी पर सांपों को दूध चढ़ाने से अक्षय-पुण्य की प्राप्ति होती है. साथ ही नागदेवता की पूजा से घर में धन आगमन का स्रोत बढ़ता है. नाग देवता की पूजा के साथ भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. इस दिन रुद्राभिषेक कराने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
अष्टनागों का करें ध्यान
कहा जाता है कि इस दिन नाग देव की आराधना से भक्तों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और सर्प दोष से मुक्ति मिलती है. नाग पंचमी के दिन अनन्त, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट और शंख नामक अष्टनागों का ध्यान कर पूजा करें. इसके बाद नाग देवता से घर में सुख-शांति और सुरक्षा की प्रार्थना करें.
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक, अर्जुन के पौत्र और राजा परीक्षित के पुत्र जन्मजेय ने सर्पों से बदला लेने और नाग वंश के विनाश के लिए एक नाग यज्ञ किया. क्योंकि उनके पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक सर्प के काटने से हुई थी. नागों की रक्षा के लिए इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने रोका था. उन्होंने सावन की पंचमी वाले दिन ही नागों को यज्ञ में जलने से रक्षा की थी और इनके जलते हुए शरीर पर दूध की धार डालकर इनको शीतलता प्रदान की थी.
उसी समय नागों ने आस्तिक मुनि से कहा कि पंचमी को जो भी मेरी पूजा करेगा उसे कभी भी नागदंश का भय नहीं रहेगा. तभी से पंचमी तिथि के दिन नागों की पूजा की जाने लगी. जिस दिन इस यज्ञ को रोका गया, उस दिन श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी एवं तक्षक नाग व उसका शेष बचा वंश विनाश से बच गया.
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