शील चरित्र रूपी आभूषण से सम्पूर्ण जीवन होता है सुशोभित

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा चरित्र मानव की सबसे बड़ी कमाई है. धनवान होना कोई बड़ी बात नहीं है. धन कोई भी जोड़ सकता है. पद पाना भी कोई विशेष बात नहीं होती. विशेष बात है प्रतिष्ठा को पाना. सम्मान व शाख को बनाये रखना. जो व्यक्ति सम्मान को मिट्टी में मिला देता है, प्रतिष्ठा को धूमिल बना देता है वह जीते जी मृतवत हो जाता है. जिसका स्वभाव सुन्दर होता है, जो चरित्रवान होता है उसका जीवन सफल बन जाता है.

शील एक ऐसा आभूषण है जो सभी अंगों पर सुशोभित होता है या सभी अंग उससे सुशोभित होते हैं. और जितने भी दूसरे आभूषण हैं वे सारे एक अंग की शोभा बढ़ाते हैं. कुण्डल से कानों की शोभा होती है. हार से गले की शोभा होती है. कंगन से हाथों की शोभा होती है पर शील चरित्र एक ऐसा आभूषण है जिससे सम्पूर्ण जीवन सुशोभित होता है. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).

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