कर्म फल की आसक्ति ही दुख और बंधन का कारण: दिव्‍य मोरारी बापू    

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि

।।जीवनु मोर राम बिनु नाहीं।।

कर्म बंधन नहीं कर्म फल की आसक्ति ही बंधन है और दुःख है. जैसे पुत्र पैदा हुआ, पुत्र मेरा है, मैंने पैदा किया है तो पुत्र के दुःख सुख से आप बच नहीं पाओगे. आपको दुःखी होना पड़ेगा और पुत्र परमात्मा की संपत्ति है; मेरे पास सुरक्षा के लिये भेजा गया है और मैं जहां तक होगा उसकी सुरक्षा करूंगा.  ईश्वर जब चाहें अपनी वस्तु ले जा सकते हैं. तो पुत्र के वियोग से आपको दुःख नहीं होगा. यदि पुत्र को आप अपना मानते हैं तो दुःख जुड़ जायेगा और ईश्वर का मानते हैं तो दुःख नहीं जुड़ेगा. संपत्ति ईश्वर की है. हमें मुनीम के तौर पर प्रभु ने एक रक्षा के लिए, 50-60 वर्ष के लिये नियुक्त किया है.

बैंक का क्लर्क लाखों रुपया रोज लेता है और रोज देता है. न लेने की खुशी होती है और न देने का दुःख होता है. उसको तो अपनी तनख्वाह चाहिए. हमें तो रोटियां चाहिए और कपड़े चाहिए बाकी हम परमात्मा तेरे मुनीम है. इस संपत्ति की रक्षा कर रहे हैं. दुरुपयोग न होने पाये.  इसके बाद तेरी है तू जान. कर्म करते हुए बंधन नहीं होगा, आपको दुःख नहीं होगा. कर्म वही दुःख देता है जहां हम उसको अपना मान लेते हैं. यह मेरापन ही दुःख देता है. एक गाड़ी अपने खरीदी ₹1000000 में बड़ी सुंदर है. घर आते ही बिगड़ जाए, आपको दुःख हुआ, आपने कम्पनी भेज कर ठीक करवा लिया.  फिर आठ लाख किसी को बेंच दिया.  वहां जाकर वह बिगड़ जाये तो आपको उतना कष्ट नहीं होता है.  क्यों नहीं होता? गाड़ी तो वही है पहले आपको दुःख क्यों हुआ इसलिए कि मेरी है. आज दुःख क्यों नहीं हो रहा है? मेरी नहीं है. जहां वस्तु मेरी है उसके साथ दुःख जुड़ा हुआ है. दुःख-सुख जुड़ा हुआ है. और जो वस्तु मेरी नहीं वहां दुःख-सुख नहीं है.  इसलिए – ” सम्पत्ति सब रघुपति कै आही”.

यह सारी संपत्ति प्रभु की है. वह मालिक है, हम मुनीम है. बस आपकी जिंदगी आराम से गुजर जाएगी. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).

 

		

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