राजस्थान। देखो भाई, कथा सुनने में लाभ ही लाभ है। कथा का अर्थ है, भगवान् की कथा, जगत की कथा नहीं। किन्तु आप में भगवान् की कथा का अद्भुत प्रभाव अब तक क्यों नहीं व्यक्त हो पाया इतने दिन आपको सत्संग करते हो गये आपका जीवन भगवान् से क्यों नहीं भर गया, इस सम्बन्ध में कुछ बातें बता रहा हूं। आपकी धारणा ठीक है कुछ अंश में की कुछ कथा-वाचकों का भीतरी जीवन और बाहरी जीवन दो तरह का होता है। अपने अन्दर के दोषों का दमन वे नहीं कर पाते और कभी-कभी जब किसी की दृष्टि में उनका वह दोष बहुत ही घृणित रूप में आ जाता है तब उसके मन में तथा कानों कान बात फैल कर कई श्रोताओं के मन में वह आदर नहीं रह जाता, जो उनके प्रति पहले था। चाहे वह बहुत ही रोचक कथा कहते हों, उनमें विद्वता भी हो तो भी उनके प्रति विरक्ति आये बिना नहीं रहती। बस, यहीं एक बात समझने की है। कल्पना करें कि आप मिठाई खाने के शौकीन है और आपको अमुक दुकान की मिठाई बड़ी अच्छी लगती है। आप सोचिये, क्या आप देखने जाते हैं, जांच-पड़ताल करने जाते हैं कि मिठाई बनाने वाले को क्या क्या रोग हैं, कहीं उसे बहुत गंदी बीमारी तो नहीं है। आपने तो मिठाई खरीदी और खाई। ऐसे ही यदि आपकी दोष बुद्धि, कथा-वाचक जी के आन्तरिक जीवन की खोजबीन की वृत्ति बिल्कुल ही मिट जाती तो आप उनके द्वारा गायी गई कथा सुनते और उस भगवत कथा के रस को पी-पीकर उन्मत्त होते रहते। उनकी कथा मात्र से ही आपका मतलब रहता, आप उनसे इतना ही सम्बन्ध रखते तो आपके जीवन में क्या श्रवण का परिणाम बहुत अंशों में अब तक मूर्त हुए बिना नहीं रहता। आप तो कथा वाचकों से मेलजोल बढ़ाने के चक्कर से तो निकल ही जाओ, साथ ही उनका व्यक्तिगत जीवन कैसा है- दोनों ओर से मन हटाकर कथा का रस पीने का प्रयास करो। भगवान् की कृपा का आश्रय लेकर ऐसी अभिलाषा जागृत करो, बढ़ाओ। अहो हरि! वे हू दिन कब एहैं। संग करत नित हरि भगतन की, हम नहिं नेकु अघैहैं। सुनत श्रवण हरि कथा सुधा-रस, महामत्त हुयो जैहैं।। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)