राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीब्रह्ममहापुराण में ब्रह्मकल्प की कथा है, इसमें सृष्टि भगवान ब्रह्मा से हुई है वैसे तो हर कल्प में सृष्टि ब्रह्मा ही करते हैं। सृष्टि का कार्य भगवान ब्रह्मा का है, पालन का कार्य भगवान विष्णु का है, संहार का कार्य भगवान शंकर का है। प्रकाश सूर्य देते हैं, शीतलता चंद्रमा के द्वारा प्राप्त होती है, ऐसे सभी देवताओं के अलग-अलग कार्य हैं। लेकिन ब्रह्मकल्प में भगवान ब्रह्मा ही प्रमुखदेव होते हैं, और भगवान् ब्रह्मा के द्वारा ही सारा कार्य होता है। इसलिए ब्रह्मपुराण में भगवान ब्रह्मा प्रधान देव के रूप में प्रतिष्ठित हैं। ब्रह्मा ने जब सृष्टि की तो सबसे पहले वृक्ष बनाये। फिर सरकने वाले जीव बनाये, फिर पशु बनाये, जल में रहने वाले जीव बनाये, फिर आकाश में उड़ने वाले जीव बनाये। मोर के पंखों में कारीगरी, तितली के परों में कारीगरी, कोयल के कंठ में कारीगरी, सिंह जैसा दिलेयर जीव, हाथी जैसा विशालकाय, सब कुछ किया ब्रह्मा ने, लेकिन ब्रह्मा जी को संतोष नहीं हुआ। क्योंकि पैदा होने वालों में किसी ने नहीं पूछा कि हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है, हमारा कर्तव्य क्या है, सबने यही पूछा कि हमारे रहने और खाने की व्यवस्था क्या है। ब्रह्मा ने सोचा सृष्टि का हमारा उद्देश्य ही गलत हो गया। ये खाने और रहने की बात करने वाले ईश्वर को कैसे पायेंगे। अंत में ‘पुरुषं विधाय, अंत में मनुष्य को बनाया। जब मनुष्य को बनाया तो इसने पहला प्रश्न कर दिया। मैं कहां से आया हूँ, किस लिए आया हूं, मेरा कर्तव्य क्या है, और मुझे इस शरीर को छोड़कर कहां जाना है, ब्रह्मा जी ने कलम तोड़ दी, आगे शरीर नहीं बनाना है। मेरे उद्देश्य की पूर्ति हो गई, मेरा उद्देश्य था कि सृष्टि में कोई शरीर ईश्वर को पाने के लिए समर्थ हो जाय, तो यह मनुष्य चोला ईश्वर को पाने में समर्थ हो गया। इसके अंदर बुद्धि है, ‘ब्रह्मावलोक धिष्णम् मुदाय देवः, परमात्मा के दर्शन की बुद्धि मनुष्य को ही प्राप्त हुई है। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में, श्रीब्रह्ममहापुराण की कथा के प्रथम दिवस श्री ब्रह्मपुराण का माहात्म्य और नैमिषारण्य तीर्थ की कथा का वर्णन किया गया। कल की कथा में मनु महाराज के वंश की कथा और श्री रामतीर्थ अयोध्या की कथा का वर्णन होगा।