राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि जब-जब मन चंचल होवे भगवान् के नामामृत और कथामृत का पान करो। कथा में बाधा आवे तो समझो कि मेरे पाप अधिक हैं। वृथा बोलने के समान कोई पाप नहीं है। माप तौल कर बोलो। जितना जरूरी है उतना ही बोलो। वाणी को संयमित करो। अन्त समय में इच्छा होने पर भी जीव बोल नहीं पाता। मन में पाप भरे हुए हैं। मन में देखोगे तो तुम्हें विश्वास होगा कि तुम्हारे मन में जितने पाप भरे हुए हैं, उतने संसार में भी नहीं है। एकाध बार का देखा हुआ सुन्दर संसारी दृश्य मन में बैठ जाता है। पर भगवत-स्मरण के समय का स्वरूप मन में नहीं बैठता। थोड़ा सा लाभ मिलने पर मनुष्य हंसता है और थोड़ा सा नुकसान होने पर रोता है। मन ऐसा है कि अपने प्रति किए उपकारों को भूल जाता है और अपकार को याद रखता है। मन को सुधारने का उपाय है। मन को उल्टा करोगे तो नम बनेगा। सबको मन से नमन करो, सभी प्रभु के स्वरूप हैं। नमन और नाम जप इन दो उपायों से मन सुधरता है। जगत में कोई खराब नहीं है। अपना मन ही खराब है। भगवत कृपा से जो मिले, उसे भगवत्- प्रसाद समझकर प्राप्त करो, कामना रखकर नहीं। भगवान की कथा के एकाध शब्द धारण होने पर भी मन सुधरता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना- श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।