माता-पिता ज्ञानदाता गुरूजन और ईश्वर का प्रसाद है जीवन: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि जीवन को सबने अलग-अलग ढंग से देखा है। अर्जुन कहते हैं कि जीवन का मतलब रणांगण, युद्ध का मैदान, संघर्ष ही जीवन है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं नहीं-नहीं, जीवन में कभी युद्ध भी होता है, किसी बुराई के विरुद्ध। लेकिन इसका मतलब जीवन युद्ध का मैदान नहीं है। जीवन तो क्रीडांगण है, जीवन खेल का मैदान है, हम बड़े आनंद से जीवन जीते। अर्जुन कहते हैं विषाद ही जीवन है, भगवान कहते हैं कि कभी-2 जीवन में दुःख आता है। लेकिन इसका मतलब जीवन विषाद है, ऐसा नहीं है। जीवन माता-पिता ज्ञानदाता गुरुजन और ईश्वर का प्रसाद है। अर्जुन कहते हैं कि रुदन ही जीवन है, भगवान श्री कृष्ण कहते हैं गीता में कि कभी-2 ऐसा अवसर आता है रोना भी पड़ता। मनुष्य के जीवन में कई बार ऐसा अवसर आता है कि उसकी आंख में आंसू होते, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है- कि रुदन ही जीवन है, (प्रहसन्निव भारत) भगवान कहते हैं कि मुस्कान ही जीवन है, हंसना ही जीवन है। जिंदगी को लोगों ने अलग-अलग ढंग से देखा है, किसी ने बंदर से पूँछा तो उसने कहा उछल कूद ही जीवन है। किसी ने गधे से पूछा जिंदगी का क्या अर्थ है- उसने कहा कि ढोढा ही जीवन है। लेकिन किसी ने साधु से पूछा की जिंदगी का क्या अर्थ है। साधु ने कहा जीवन वह पुष्प है कि हम सत्कर्म और ईश्वर की आराधना करके जीवन रूपी पुष्प को ईश्वर के चरणों में समर्पित कर धन्य हो सकते हैं, अगर ऐसा हमने कर लिया- तो मरने वाला मानव अजर अमर बन सकता है। ऋषियों ने नैमिषारण्य में सूत जी से पूछा कि भगवान शंकर की पूजा दो तरह से होती है, एक तो हम भगवान शंकर के त्रिशूलधारी स्वरूप की पूजा करते हैं और दूसरा शिवलिंग के रूप में भगवान शंकर की पूजा होती है। शिवलिंग के रूप में भगवान शंकर की पूजा कब से की जा रही है। सूत जी महाराज बताते हैं कि एक बार ब्रह्मा और भगवान विष्णु में विवाद हो गया कि हम बड़े तो हम बड़े। भगवान शंकर दिव्य ज्योति के रूप में प्रकट हुए और तभी से ज्योति रूप में भगवान शंकर की पूजा की जाती है। शिवलिंग भगवान शिव का ज्योति स्वरूप है। अरुणाचल में प्रगटेश्वर महादेव, यहीं भगवान शंकर प्रथम ज्योति रूप में प्रकट हुए। तब से हर जगह इस स्वरूप की पूजा होती है। शिवजी की पूजा दो रूपों में होती है- साकार और निराकार, शिवलिंग भगवान शंकर का निराकार स्वरूप है।छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धाश्रम) का पावन स्थल, महाराज श्री, श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में चातुर्मास के अवसर पर श्री शिव महापुराण कथा के चतुर्थ दिवस शिव प्रकाट्य की कथा का वर्णन किया गया और उत्सव महोत्सव मनाया गया। कल की कथा में कैलाश की महिमा, शिव के द्वारा कैसे सृष्टि हुई और सतीखण्ड की कथा का वर्णन किया जायेगा।

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