राजस्थान/पुष्कर। परम् पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि संसार का यही स्वरूप है। यहां की प्रत्येक वस्तु क्षणभंगुर है। इसमें ममता आसक्ति होने से बन्धन तथा दुःख होता है। आत्मा के नाते एक परमतत्व होने पर भी, जीव के नाते कोई किसी का नहीं है। न किसी के साथ किसी का स्थाई सम्बन्ध है। जैसे रेल के डिब्बे में या धर्मशाला में, जहां-तहां के यात्री आकर इकट्ठे हो जाते हैं और फिर समय पर अपनी-अपनी राह चल देते हैं, यही यहां का हाल है। इलाज करना करवाना कर्तव्य है, सो करवाया ही जाता है, पर इलाज करने वाले भी मृत्यु से नहीं बच सकते हैं। संसार के इस दुःखमय स्वरूप को समझ कर जीवन के असली उद्देश्य पर ध्यान देना चाहिए। ईश्वर की मानसी सेवा का अति उत्तम समय प्रातः 4:00 से 5:30 बजे तक है। ईश्वर की मानसिक सेवा सरल नहीं है। कोई लौकिक विचार आया तो समझो मानसिक सेवा भंग हो गई। माया के आधीन जो हो जाये, वह जीव है और माया जिसके अधीन है, वह ईश्वर है। माया के साथ अधिक प्रीति न होवे, इसके लिए सदैव सतर्क रहो। मितभाषी व्यक्ति सत्यवादी होता है। मुझमें अभिमान नहीं है, यह मानना भी अभियान है। भगवान की मूर्ति से स्नेह रखो। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेडा पुष्कर जिला-अजमेर राजस्थान।