राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि मैं नहीं मेरा नहीं ये तन किसी का है दिया। जो भी तेरे पास है वो धन किसी का है दिया। कुछ लोग कहते हैं हमने अपनी बुद्धि से कमाया, कुछ लोग कहते हैं हमने अपने परिश्रम से कमाया। अध्यात्म जगत के लोग कहते हैं कि बुद्धि तो तुम्हें भगवान ने दिया और शरीर में शक्ति भी भगवान ने ही दिया है। हमारे पास जो कुछ है वह सब ईश्वर का दिया हुआ है। टीवी में आप जो कुछ देख रहे हो, वह सब दूरदर्शन से ही आ रहा है। न आपको दूरदर्शन केंद्र दिखता है, न रास्ते में आते चित्र दिखते हैं। टीवी में प्रगट हो रहे है। अज्ञानी व्यक्ति यही समझेगा जो कुछ इसके भीतर भरा है वही निकल रहा है, लेकिन समझदार व्यक्ति ये समझता है चित्र दूरदर्शन केंद्र से आ रहा है। वहां से अगर रिलीज न हो तो यहां तो प्रगट हो ही नहीं सकता। देखो रास्ते में चित्र दिखते नहीं, दूरदर्शन केंद्र दिखता नहीं, ये हमारा विश्वास है, ये हमारा निश्चय है कि जितने चित्र आ रहे हैं सब दूरदर्शन केंद्र से आ रहे हैं। उपग्रह के माध्यम से आ रहे हैं। पढ़े लिखे लोग सब समझते हैं। इसी तरह से हमारे जीवन में जो कुछ हो रहा है। वो बाहर से आता हुआ भले दिखाई न दे, देवता का केंद्र भले हमें न दिखे, लेकिन हमें ऐसा मानना चाहिए कि हमारे जीवन में जो हो रहा है वो सब ईश्वर से आ रहा है। उनका दिया हुआ ही हम प्राप्त कर रहे हैं। इस प्रकार की आप की भावना रहे, तो एक तो आपको कभी अभिमान नहीं होगा, दूसरे भगवान को कभी आप भूल नहीं पावोगे क्यों कि भगवान दे रहे हैं।
तो भगवत स्मृति आपको बनी रहेगी और भगवान दे रहे हैं तो अभिमान किस बात का, कोई सेठ मुनीम को देता है कि एक हजार कम्बल खरीद कर हरिद्वार में संतों को बांटो। मुनीम आकर बांटे और अभिमान करें कि मैंने बांटा तो समझदार है कि मूर्ख है। उसको तो दीन होकर यही भाव रखना है कि मैं कहां दे रहा हूं, सेठ ने पैसे दिए, खरीदकर मैंने बांट दिए, मेरा क्या है, जैसे- मुनीम देकर अभिमान न करें तभी उसका कल्याण है, इसी तरह मनुष्य अच्छा कर्म करे और अभिमान न करे। यह मानकर कि हम तो ठाकुर के मुनीम हैं। वो वहां से दे रहे हैं हम आगे वितरण करते चले जा रहे हैं, तो अभिमान भी नहीं होगा और भगवान की विस्मृति भी नहीं होगी। मान लिया जाय कि आपने पैसा कमाकर मेन बाजार में दुकान खरीदी। मैंने खरीदी, तो मै ही याद रहेगा। गरीबी थी और किसी ने दस लाख पगड़ी देकर दुकान दिलवा दी, सामान डाल दिया और कहा इसमें कमाओ। अब वो व्यक्ति जब दुकान में बैठेगा, तो दस लाख की पगड़ी और सामान डलवाने वाले को भूलेगा क्या, उसने हमें पैरों पर खड़ा किया है, उसके सहयोग से हम आगे बढ़ रहे हैं। नहीं तो हम कुछ भी नहीं थे। जैसे वो दुकान में बैठा स्मरण करता है कि हमें उन्होंने दिया है, इसी तरह हम स्मरण करें प्रभु हमें आपने दिया है। आपकी कृपा का ही सब कुछ है। हम तो कुछ करने लायक ही नहीं। छोटीकाशी बूँदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धाश्रम) का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में, चातुर्मास के पावन अवसर पर चलने वाले सत्संग में श्रीब्रह्ममहापुराण कथा के पांचवें दिवस सृष्टि के पहले इस धरा धाम पर भगवान ब्रह्मा के अवतार की कथा का वर्णन किया गया। कल की कथा में भगवान ब्रह्मा की अन्य लीलाओं का वर्णन किया जायेगा।