पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भगवान् श्री कृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता के सातवें अध्याय में अर्जुन से कहते हैं कि- जिसने अपना मन मुझमें लगा लिया, मेरे आश्रय होकर जो योग का अभ्यास करता है, वही मुझको सही ढंग से समझ पाता है। मैं तुम्हारे सामने ज्ञान के विज्ञान सहित ज्ञान कहूंगा। जिसको जानकर फिर कुछ जानना बाकी नहीं रहता। जिसे ज्ञान प्राप्त हो गया उसे फिर कुछ और जानना बाकी नहीं रह जाता, सब कुछ जान लिया। जिसे मिट्टी का ठीक-ठीक बोध हो जाये, मिट्टी के बने पदार्थों को समझने में कोई कठिनाई नहीं है। प्लास्टिक का ठीक-ठीक बोध हो जाने के बाद प्लास्टिक के बने विभिन्न बर्तनों को, रस्सियों को बाकी वस्तुओं को समझने में कोई कठिनाई नहीं आती। इसी तरह ईश्वर को जान लेने के बाद ईश्वर के बनाये संसार को समझने में कोई कठिनाई नहीं होती। जल के अंदर जो रस है, वह मैं हूं। सूरज और चांद में जो प्रकाश और शीतलता है, वह मैं हूं। अज्ञानी को ईश्वर दिखाई नहीं देता और ज्ञानी की दृष्टि से ईश्वर कभी ओझल नहीं होता। अज्ञानी कहता है कि ईश्वर कहां है, किसने देखा है। भक्त और ज्ञानी कहते हैं कि ईश्वर कहां नहीं है, सब देख रहे हैं। श्रीमद्भगवत गीता के नवें अध्याय में भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं- अर्जुन! तू मेरा श्रद्धावान भक्त है, इसलिए मैं तुझे गुप्त से गुप्त संदेश-दे-रहा हूं। यह समस्त विद्याओं में राज विद्या है। मनु जी मनुस्मृति में लिखते हैं कि- चाहे कोई किसी विषय में पी0एच0डी0 कर लो, पर यदि आपको अध्यात्म का ज्ञान नहीं है तो आप शास्त्र की दृष्टि से अज्ञानी ही हो और कुछ भी नहीं पढ़ा, पर तुम्हें ईश्वर के बारे में जानकारी है, आत्मा के बारे में जानकारी है, माया के विषय में जानकारी है, आत्मा और परमात्मा के सम्बन्ध की जानकारी है, तब आप विद्वान हो। “सा विद्या या विमुक्तये” यानी विद्या वही है जो मुक्ति में हेतु बने, बाकी विद्यायें उदर पूर्ति की कला है। राजविद्या का अर्थ है कि समस्त विद्याओं में जो राजा विद्या है, वह राज विद्या है। श्रीमद्भगवद्गीता राज विद्या है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।