अपने से बड़ों की सेवा करना मनुष्य का है परम कर्तव्य: दिव्य मोरारी बापू
राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि माता-पिता गुरुजनों की सेवा में आलस्य और कामना का त्याग। माता-पिता, आचार्य एवं और भी जो पूजनीय वर्ण, आश्रम, अवस्था और गुणों में किसी प्रकार भी अपने से बड़े हों, उन सबकी सब प्रकार से नित्य सेवा करना और उनको नित्य प्रणाम करना मनुष्य का परम कर्तव्य है। इस भाव को हृदय में रखते हुए आलस्य का सर्वथा त्याग करके, निष्काम भाव से उत्साह पूर्वक भगवदाज्ञानुसार उनकी सेवा करने में तत्पर रहना। यज्ञ, दान और तप आदि शुभ कर्मों में आलस्य और कामना का त्याग। पंच महायज्ञ÷ 1- देवयज्ञ÷ अग्निहोत्रादि, पंचदेव उपासना- गणेशजी का स्मरण, माता जी की ज्योति, भगवान शंकर को जलधारा, सूर्य नारायण भगवान को जल धारा एवं प्रणाम, और भगवान राम-कृष्ण, नारायण के नाम का जप । ये सब देवयज्ञ के अंतर्गत आता है। 2- ॠषियज्ञ÷ वेद-पाठ, संध्या- गायत्री, जपादि। साधु-संतों की सेवा, संत-सद्गुरु के बताये मार्ग पर चलना, शास्त्रों का स्वाध्याय, ऋषियों के प्रति सम्मान, शास्त्र मर्यादा में जीवन जीना, ये सब ऋषियज्ञ के अंतर्गत आता है।
3- पितृयज्ञ÷ तर्पण-श्राद्धादि, पितरों के प्रति पूर्ण श्रद्धा। 4- मनुष्ययज्ञ÷ अतिथिसेवा, आओ बैठो पियो पानी। तीन वस्तु मुफत में आनी। यथाशक्ति मानवमात्र की सेवा की भावना रखना यह मनुष्ययज्ञ के अंतर्गत आता है और 5- भूतयज्ञ÷ बलिवैश्वदेव, प्राणी मात्र की सेवा। जितना सम्भव हो उतनी सेवा करते रहना चाहिए। नित्यकर्म एवं अन्यान्य नैमित्तिक कर्मरूप यज्ञादि का करना तथा अन्न, वस्त्र, विद्या, औषध और धनादि पदार्थों के द्वारा सम्पूर्ण जीवों को यथा योग्य सुख पहुंचाने के लिये मन, वाणी और शरीर से अपनी शक्ति के अनुसार चेष्टा करना तथा अपने धर्म का पालन करना करने के लिये हर प्रकार से कष्ट सहन करना इत्यादि, शास्त्रविहित कर्मों में इस लोक और परलोक के सम्पूर्ण भोगों की कामना का सर्वथा त्याग करके एवं अपना परम कर्तव्य मानकर श्रद्धासहित उत्साहपूर्वक, भगवदाज्ञानुसार केवल भगवदर्थ ही उनका आचरण करना चाहिए। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू-संतों की शुभ मंगल कामना- श्री दिव्यमोरारीबापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर, (राजस्थान)।