पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि विहाय कामान् यः सर्वान्पुमांश्चरति निस्पृहः। निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति।। जो व्यक्ति समस्त कामनाओं का त्याग करके इच्छा रहित होकर व्यवहार करता है, मैं और मेरे का जो त्याग कर देता है, उसे तत्काल शांति मिल जाती है। इच्छा की पूर्ति से तनिक शांति मिलती है पर इच्छा के नाश होने पर अखंड शांति मिलती है। आपके मन में किसी वस्तु की इच्छा हुई और वह वस्तु प्रयत्न करने पर आपको मिली, उसे क्षणिक शांति मिली, पर वस्तु को पाने की इच्छा ही न हो तो आपके अंदर अखंड शांति का सदा उदय रहेगा ,सदा! सदा! आपके अंदर शांति का समुद्र लहरायेगा। पहले कांटा चुभता है, अब वो टूट गया, अब वह दर्द दे रहा है, डॉक्टर के पास गये, उसने कांटा निकाल दिया, हमें सुख मिला। डॉक्टर ने हमें सुख दिया, हम दुःखी थे, कांटे से हमें कष्ट हो रहा था। डॉक्टर ने कांटा निकाल कर हमारा दुःख मिटा दिया, एक पक्ष यह भी है कि यदि आप सावधानी से चलते, कांटा चुभता ही न, दुःख होता ही न और शांति पहले ही विद्यमान थी। कांटा न चुभता तो डॉक्टर ने सुख दिया, यह भावना ही न जागती। हम जब कुसंग करते हैं, भोगों को देखते हैं और उन्हें पाने की इच्छा रूपी काटा अंदर चुभता जाता है और जब वह कांटा रूपी इच्छा की थोड़ी पूर्ति होती है तो लगता है अमुक ने हमें सुख दे दिया, हम उसके कृतज्ञ होकर उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगते हैं, इसने हमें सुख दिया। लेकिन शास्त्र कहते हैं, अगर तेरे अंदर कामना ही न होती तो तुझे सदा सुख मिलता, तुझे किसी से सुख मांगने की जरूरत ही न पड़ती। ”निर्ममो, निरहंकारः” जिसके अंदर मैं और मेरा की भावना ही न रही, जिसमें समस्त कामनाओं का त्याग कर दिया, वह शांति प्राप्त सकता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।