ईश्वर को चाहने वाला ही होता है सर्वोत्कृष्ट भक्त: दिव्य मोरारी बापू
राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीसुदामाजी की कथा श्रीमद्भागवत महापुराण में भक्त श्रीसुदामा जी की कथा अत्यंत शिक्षाप्रद है। सुदामा जी भगवान के सखा थे, ये मैत्री सांदीपनि मुनि के आश्रम उज्जैन में हुई। श्री सुदामा जी भगवान के अनन्य भक्त थे। उनका भगवान में अनंत प्रेम था, लेकिन उन्होंने अपनी उपासना, अपनी भक्ति, अपना ईश्वर के प्रति प्रेम, इसको गुप्त रख रखा था। उनकी पत्नी सुशीला तक को भी इस बात का पता नहीं था, भगवान सन्यासी का रूप लेकर सुशीला जी को घर जाकर के बताये कि तुम्हारे पति की द्वारिकाधीश से घनिष्ठ मित्रता है। तब श्री सुशीला जी ने सुदामा जी से स्वयं पूँछा कि श्री कृष्ण आपके मित्र हैं और तब सुदामा जी ने उन्हें बताया। ईश्वर की भक्ति में दिखावा नहीं होना चाहिए। दिखावा होने से भक्ति में दम्भ का प्रवेश हो जाता है और हम ज्यादा ही दिखावा करते हैं, तो हमारी भक्ति केवल दम्भ वन करके रह जाती है। श्री सुदामा जी की आयाचक वृत्ति थी। वे किसी से कुछ मांगते नहीं थे। उनके मन में ईश्वर एवं ईश्वर भक्ति के अलावा कोई चाहना भी नहीं थी। संसार की चाह ईश्वर भक्तिमें बाधक है। संसार के किसी भी सुख की हम चाह करते हैं, तो हमारी इच्छा पूरी हो जाती है, वह सुख हमें प्राप्त हो जाता है, लेकिन ईश्वर नहीं प्राप्त होते। जो कुछ नहीं चाहता है उसको ईश्वर की प्राप्ति होती है। श्री सुदामा जी भगवान के सर्वोत्कृष्ट भक्त थे। वे भगवान से भी कुछ नहीं चाहते थे, केवल भगवान को चाहते थे। भगवान से चाहने वाले दूसरे नंबर के भक्त कहलाते हैं। सर्वोत्कृष्ट भक्त वही है जो केवल ईश्वर को चाहते हैं। घर, परिवार, संसार की सारी जिम्मेदारी, सारे कर्तव्य का पालन ईश्वर की आज्ञा मानकर, ईश्वर की प्रसन्नता के लिए करते हैं वही इस संसार में धन्य हैं। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धा आश्रम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में- श्री दिव्य चातुर्मास महोत्सव के अवसर पर पाक्षिक भागवत के तेरहवें दिवस की कथा में भक्त सुदामा की कथा का गान किया गया। कल की कथा में शेष दशम् स्कंध की कथा का गान किया जायेगा।