कर्मयोग से होती है ईश्वर की प्राप्ति: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयज्ञ कर्मयोग तीसरे अध्याय में भगवान बता रहे हैं- कर्म कैसे करना चाहिए। अब कर्म का दर्शन सुनें। कर्म हर व्यक्ति करता है, लेकिन कर्म कैसे करना चाहिए, ये तीसरे अध्याय का विषय है। अर्जुन का प्रश्न- कामनाओं का त्याग संन्यास से होता है तो आप हमें सन्यासी बनने से क्यों रोकते हैं? मुझे घोर कर्म में क्यों लगा रहे हैं? आप समस्त कामनाओं का त्याग करके हमें भजन करने दीजिए। भगवान कृष्ण ने कहा देखो पार्थ इस संसार में ईश्वर प्राप्ति के दो मार्ग हैं।सांख्ययोग और कर्मयोग। जहां सब कुछ त्याग कर भजन करना सांख्ययोग है, वही कर्तव्य बुद्धि से कर्म करना कर्मयोग है। सन्यासयोग की अपेक्षा कर्मयोग श्रेष्ठ है। दुनियां में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जो बिना कर्म किये एक क्षण भी बैठ जाये। हम बैठे हुए भी कर्म करते हैं। आपका मन किसी विषय में सोच रहा है, मानसिक कर्म है। शरीर से भी कुछ न कुछ कर्म करते रहते हैं। भोजन बनाना भी कर्म है, तो थाली से उठाकर भोजन ग्रास मुख में देना भी कर्म है। बिना कर्म के हम एक क्षण भी नहीं रह सकते, जब कर्म करना ही है तो हम इस ढंग से कर्म करें कि जो आसक्ति से रहित हो। कर्म का फल हमें स्पर्श भी न कर सके। योगः कर्मशु कौशलम्। कर्म ईश्वर के लिए करना, कर्म कर्तव्य बुद्धि से करना यही कुशलता है। कण्टकेन कण्टकोद्धारः। कांटे से कांटा निकालो। एक तो असावधानी कि बिना जूता चप्पल के आप चले, दूसरा रास्ता न देखकर इधर-उधर देख रहे थे। कांटा लग गया, वह कांटा कष्ट दे रहा है। आप वहीं बैठ जाते हैं और दूसरा कांटा तोड़ लेते हैं, चुभाते हैं, ये तो पहले से चुभा हुआ है। पहले असावधानी से चुभा है इसलिए कष्ट दे रहा है। अब सावधानी से चुभाते हैं, वो दूसरे कांटे को भी निकाल देता है। जिससे आपका कष्ट दूर हो जाता है। हमने असावधानी से जो कर्म किये, राग-द्वेष से प्रेरित होकर जो कर्म किये, वे कर्म हमारे लिए बंधन, दुबारा जन्म और पीड़ा देने वाले हो गये। अब हम सावधानी से कर्म करें, जैसे हमने कांटे से कांटा निकाल दिया, वैसे सत्कर्मों से पहले कर्मों के फल को भी समाप्त कर दें। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम एवं वात्सल्यधाम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री- श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में दिव्य चातुर्मास के पावन अवसर पर, श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयज्ञ के चतुर्थ दिवस कर्मयोग का गान किया गया। कल की कथा में ज्ञानकर्मसन्यास योग का गान किया जायेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *