क्षत्रिय के लिए धर्म युद्ध से बढ़कर नहीं है कोई दूसरा धर्म: दिव्य मोरारी बापू
राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयज्ञ स्वधर्म पालन की महिमा श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- अर्जुन! तुम आत्म तत्व को नहीं समझ सकते तो अपने धर्म को समझो। धर्म के दो रूप हैं÷(1) समष्टि धर्म (2) व्यष्टि धर्म। समष्टि धर्म के चार चरण हैं। सत्य, तप, दया, दान ये मानव मात्र के लिये धर्म है। सत्य बोलना, जीवों पर दया करना, अपनी कमाई का थोड़ा सा हिस्सा दान करना और पवित्रता के साथ भगवान का भजन करना, ये सब के लिए है। व्यष्टि धर्म में वर्ण धर्म, आश्रम धर्म, पति का धर्म, पत्नी का धर्म, माता-पिता का धर्म, संतान का धर्म, राजधर्म इन सबकी अनेक शाखाएं भी है। भगवान कहते हैं अपने देश तथा अपने धर्म से प्रेम करो। किसी से भी द्वेष मत करो। क्षत्रिय के लिए धर्मयुद्ध धर्म है। पालन करने से कल्याण ही कल्याण है।
प्रश्न- धर्म युद्ध किसे कहते हैं? उत्तर- हम लड़ना न चाहे, हम पर लड़ाई थोपी जाये, लड़ने के लिये मजबूर किया जाय, हमारे धन, धर्म, धरती का अपहरण किया जाय। वहां लड़ना क्षत्रिय के लिये सबसे बड़ा धर्म है। क्षत्रिय के लिये धर्म युद्ध से बढ़कर दूसरा कोई धर्म है ही नहीं। माला लेकर तप करने वाले को जो स्वर्ग, बैकुंठ मिलेगा। अपने धर्म का पालन करने वाले को वही पुण्य फल प्राप्त होता है। देश की रक्षा करने वाला सैनिक उसी पुण्य को प्राप्त करता है। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम एवं वात्सल्यधाम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में दिव्य चातुर्मास महामहोत्सव के अंतर्गत श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयज्ञ के तीसरे दिन क्षात्रधर्म के अनुसार युद्ध करने की आवश्यकता का निरूपण किया गया। कल की कथा में कर्मयोग कागान किया जायगा।