जब तक श्रेष्ठ ज्ञानी से भेंट नहीं होती, तब तक शोक तथा मोह नहीं होता नष्ट: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा,श्री सूत जी के मुख से यह वचन सुनकर श्री शौनकादि ॠषि अपने दोनों हाथ जोड़कर उनके सम्मुख बैठ गये। तदुपरान्त सब ऋषियों ने परस्पर विचार विमर्श करके सूत जी से कहा- हे सूत जी ! शिवजी तो निर्गुण कहलाते हैं, उन्होंने सगुण रूप किस प्रकार धारण किया ? उन्होंने संसार को किस प्रकार उत्पन्न किया तथा स्वयं किस प्रकार उत्पन्न हुए ? वे प्रलयकाल में संसार को नष्ट करके, स्वयं किस प्रकार स्थित रहते हैं? वे किस कार्य से प्रसन्न होते हैं और प्रसन्न होकर क्या वरदान देते हैं?

हे सूत जी! यह सब वृत्तांत तथा इसके अतिरिक्त भी, भगवान् सदाशिव के संबंध में और जो कुछ जानने योग्य हो, आप उसे हमें बताइए क्योंकि आप श्री वेदव्यास जी की कृपा से भूत, भविष्य एवं वर्तमान – इन तीनों कालों की गति को जानने में समर्थ हैं। तभी तो व्यास जी ने कृपा करके अपने श्री मुख से आपको इस ब्रह्मांड का संपूर्ण रहस्य समझा दिया है। यह बात निश्चित है कि जब तक श्रेष्ठ

ब्रह्म-ज्ञानी से भेंट नहीं होती, तब तक शोक तथा मोह नष्ट नहीं होता। हम तो उसी को बड़ा भाग्यवान् मानते हैं, जो शिव जी के कथा कीर्तन से अपना संबंध सदैव बनाए रखता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना।

श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

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