ध्यान का मतलब है ध्येय में मिल जाना: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा प्रथम स्कंध श्री शुकदेव जी का आगमन-जैसे नदी की धारा समुद्र में मिलकर एक हो जाती है, इसी तरह ध्यान का मतलब होता है, ध्येय में मिल जाना। आंख बंद होने पर जब स्वप्न में भी संसार दिखता है, तो जागृत अवस्था में आंख बंद होने पर भगवान क्यों नहीं दिखते? उसका कारण यह है कि स्वप्न तब दिखता है जब हम जागृत के शरीर को भूल जाते हैं। ऐसा व्यक्ति कोई व्यक्ति नहीं होगा, जो यह कहे कि स्वप्न आते समय उसे यह ध्यान था कि वह अमुक कमरे में पड़ा है, अमुक व्यक्ति के पास सोया हुआ है, मैं यह हूं और मुझे स्वप्न आ गया। जब वह व्यक्ति शरीर को भूल गया, स्वयं से ऊपर उठा तब स्वप्न दिखाई देता है। इसी तरह ध्यान की अवस्था में जब आप ध्यान करते हुए शरीर को भूल जाओगे तो आपको भगवान् स्पष्ट नजर आने लगेंगे। लेकिन शरीर आप कब भूल पायेंगे? जब आपकी अहंता और ममता समाप्त हो जायेगी। जब तक देह के प्रति अहं भाव है और परिवार के प्रति ममता है, मेरापन है, तब तक ध्यान लग नहीं सकता, आंखें बंद करके बैठे रहो। कथा में बैठे बार-बार घड़ी देखते रहोगे कि कब समय हो और हम भागें क्योंकि आसक्ति परिवार की है, काम आपको और बहुत सारे करने हैं। यहां पर जबरदस्ती आकर बैठ गये हो। शरीर सत्संग में है, मन वहां चला गया है। भगवान् कहां से आएंगे? भगवान् भक्त को तब दिखते हैं जब केवल भक्त और भगवान दो ही होते हैं, तीसरा बीच में नहीं होता, बस इतना ध्यान रखना चाहिए। भक्त को भगवान कब दिखते हैं, जब भक्त और भगवान ही होते हैं। महाराज परीक्षित ने जो चार स्थान दिये थे उनमें अन्याय से कमाया हुआ स्वर्ण था। भीमसेन, जरासंध के यहां से एक बड़ा कीमती मुकुट ले आई थे, वह अन्याय से कमाये हुए धन से बना था। उसको धारण करके महाराज शिकार खेलने चले गये। शिकार में बहुत से जीवो की हिंसा हुई, मुकुट सिर पर था, कलयुग उन्हीं के सिर पर सवार था और शमीक ॠषि के यहां पहुंचे, प्यास लगी थी, भूख लगी थी, शमीक ॠषि ध्यानस्थ थे। ऋषि पुत्र श्रृंगी के द्वारा श्राप, ऋषि शिष्य गौरमुख के द्वारा संदेश, महाराज परीक्षित का शुकताल आना और उनकी सभा में शुकदेव जी का आगमन। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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