पुष्कर/राजस्थान। परमपुज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि भक्तों के लिए होली अत्यंत भक्ति भावना के सम्मान का पर्व है। भक्त प्रहलाद उच्चकोटि के भक्त थे। हिरण्यकशिपु उनकी भक्ति भावना का विरोध करता था। भक्त प्रल्हाद भक्ति छोड़ने को तैयार नहीं थे। हिरण्यकशिपु उनको समाप्त करने का बहुत उपाय किया। होलिका नाम की उसकी बहन थी जिसको भगवान् शंकर से एक पीतांबर मिला हुआ था, जिसे ओढ़कर वह अग्नि में भी चली जाय तो उसके ऊपर अग्नि का प्रभाव नहीं पड़ता था। होलिका ने हिरण्यकशिपु से कहा कि भगवान् शंकर की दी हुई चादर हमारे पास है। अग्नि का ढेर तैयार किया जाय, हम उसी चादर को ओढ़ कर, प्रह्लाद को गोद में लेकर के बैठ जायेंगे, प्रह्लाद जलकर राख हो जायेगा और मेरा कुछ भी नहीं होगा। हिरण्यकशिपु ने वैसी ही व्यवस्था किया। लेकिन संयोग ऐसा बना कि भगवान् ने भक्त प्रहलाद की रक्षा कर ली, होलिका ही जलने लगी। भगवान् शंकर से भगवती पार्वती ने पूछा कि आपका वरदान निष्फल हो रहा है। होलिका जल रही है। भगवान शंकर ने कहा हमने होलिका को चादर दिया था आत्मरक्षा के लिये, किसी भक्त को जलाने के लिये नहीं। भक्त का जो अपराध करता है वह स्वयं ही जलकर समाप्त हो जाता है। जो अपराध भगत कर करहीं। राम रोष पावक सो जरहीं।। प्रह्लाद जी की भक्ति भावना की विजय हुई। तभी से भक्तजन होली के अवसर पर होलिका दहन और दूसरे दिन रंगोत्सव आदि का पर्व मनाते हैं। हम लोगों को भी उसी भक्ति भावना से भगवान् का होली महोत्सव पर मनाना चाहिए। हमको अपने ठाकुर जी से भी होली खेलना चाहिए। मंदिर जाकर दर्शन करना चाहिए। ऐसा करने से हमारी भगवान के प्रति निष्ठा और भक्ति दृढ़ होती है। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश)। श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।