भक्ति से मिलते हैं ज्ञान और वैराग्य: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्री दिव्य चातुर्मास महामहोत्सव के पावन अवसर पर सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय, (भव्य-सत्संग) श्री शारदीय नवरात्रा के पावन अवसर पर श्रीरामकथा (नवम-दिवस सानिध्य-श्री घनश्याम दास जी महाराज (पुष्कर-गोवर्धन) वक्ता-श्री श्री 1008 महामंडलेश्वर श्री दिव्य मोरारी बापू, कथा का समय-दोपहर 1:00 बजे से सायंकाल 5:00 बजे तक। कथा स्थल-श्री मंशापूर्ण भूतेश्वर महादेव मंदिर सवाई माधोपुर चौराहा टोंक (राजस्थान) सत्संग के अमृतबिंदु-मन क्रम वचन छांड़ि चतुराई। भजत कृपा करिहैं रघुराई। भक्ति की प्राप्ति कैसे होती है? प्रभु श्री राम स्वयं बतला रहे हैं। जिसे भक्ति मिल जाती है, उसे ज्ञान और वैराग्य अपने आप प्राप्त होते हैं। ज्ञान, वैराग्य भक्ति से मिलते हैं और भक्ति कैसे मिलती है।”भगति तात अनुपम सुख मूला। मिलइ जो संत होइं अनुकूला।।” बिना महत्पादरजोऽभिषेकं।। जब तक संतों की कृपा आपके ऊपर नहीं होगी तब तक भक्ति प्राप्त नहीं हो सकती और संत की कृपा-जब आप संत की शरण में जायेंगे, उन पर विश्वास करेंगे, उनके आदेश का पालन करेंगे तो भक्ति आपको मिल जायेगी। अब भक्ति के साधन क्या है, तो भगवान् श्री राम कहते हैं- सबसे पहले भू देवों के चरणों में प्रीति होनी चाहिए। क्योंकि भू देव ही वेद शास्त्र का प्रचार करते हैं। प्रथमहिं विप्र चरण अति प्रीती। निज निज कर्म निरत श्रुति रीती। वेदों के द्वारा जो कर्म निश्चित किये गये हैं, उसका पालन करिये, वैदिक मर्यादा से और निष्काम भाव से अपने कर्तव्य का पालन कीजिए। इसका फल यह होगा कि विषयों से वैराग्य हो जायेगा। और जब विषयों से वैराग्य होगा तो भक्ति का जागरण होने लगेगा। श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनं। नवधा भक्ति कीजिए।प्रभु श्री राम कहते हैं मेरी लीला-कथाएं हमेशा सुनते रहिये। फिर-“संत चरण पंकज अति प्रेमा।” संत चरणों में अति प्रेम हो जाये। मनसा, वाचा, कर्मणा दृढ़ हो करके नियम से भजन कीजिए। भोजन करना है- भजन के बाद। रात्रि में सोना है- भजन के बाद। बाधाएं आयें तब भी उनका सामना कीजिए, भजन नहीं छोड़िए। संसार के जो नाते हैं इनमें ज्यादा ध्यान नहीं दीजिए। भगवान् को ही अपने नाते-रिश्तेदार मान लीजिए। जैसे मीरा जी कहती रहती थीं ” मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरों न कोई। जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।। तात-माता-भ्रात-बंधु आपनो न कोई।त्याग दीन्ही कुल की कानि कहा करि है कोई।। मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई। ” इस तरह भगवान् को ही अपना माता-पिता,भाई-बंधु मान लीजिए।और भगवान् श्री राम कहते हैं मेरे गुण गाओ। भगवान् श्री राम कहते हैं- मेरी कथा सुनते समय या सुनाते समय अगर शरीर में रोमांच हो जाये, आंखों से आंसू बहने लगे और कथा सुनाने की इच्छा हो, बार-बार सुनने की इच्छा हो, मन में वासना न रह जाये, भजन के फल की इच्छा न रह जाये तो ऐसे भक्त के हृदय में मैं सदा निवास किया करता हूं। यह भगवान राम कहते हैं- “वचन कर्म मन मोरि गति भजनु करहिं निःकाम। तिन्ह के हृदय कमल महुँ करउँ सदा विश्राम। भगवान् श्री राम कहते हैं ” ऐसे भक्तों के हृदय में मेरा सदा निवास होता है।” सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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