भक्तों का जीवन-प्राण है कृष्णकर्णामृत: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीविल्वमंगलजी भगवान श्री कृष्ण के परम कृपापात्र श्रीविल्वमंगलजी इस संसार में प्रत्यक्ष मंगल-कल्याण के स्वरूप थे। विश्व का मंगल ही विल्वमंगल के रूप में प्रकट हुआ। आपने कृष्ण कर्णामृत नामक सुंदर काव्य का निर्माण किया, जिसकी उक्तियां सर्वथा नई है, दूसरे कवियों की जूठी नहीं है। प्रेमाभक्ति से प्रगट सहज एवं दिव्य-उद्गार हैं। कृष्णकर्णामृत रसिक-भक्तों का जीवन-प्राण है, उन्होंने इसे कई लड़ियों के हार के समान अपने हृदय में धारण किया है। एक बार भगवान श्याम सुंदर ने मार्ग दिखाते हुए अपना हाथ पकड़ाया और फिर उसे छुड़ा लिया। उस समय आपने उनसे कहा- हाथ छुड़ाकर चले जाने से क्या हुआ, मैं तुम्हें वीर पुरुष तब समझूं, जब मेरे हृदय के बंधन से छूट कर चले जाओ। आपने चिंतामणि का संग पाकर ब्रजगोपियों के साथ हुई श्रीकृष्ण की रहस्य लीलाओं का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है। उसके द्वारा सभी भक्तों का मंगल हुआ, अतः आप मंगल की मूर्ति ही थे। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम,
श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर
जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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