पुष्कर/राजस्थान। यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिः मम्।। जहां पार्थ हैं वहां योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं। धनुर्धर पार्थ के निकट योगेश्वर कृष्ण विराजमान हैं। जो धनुर्धारी है अर्जुन जैसा, जो पुरुषार्थ के लिये तैयार है, वही मनुष्य भगवान् के निकट रह सकता है। अर्जुन रथी है तो जीवात्मा रथ है। देह भी रथ है। उसके सारथी बनेंगे श्रीकृष्ण और उसके हाथ में हमारे जीवन की बागडोर सौंपना है। हमारे रथ को वह चलायेंगे। हमें युद्ध करना है। वे हमारे साथ हैं। आग लग चुकी है ऐसा समझ में आते ही उसको बुझाने के प्रयत्न में जुट जाना चाहिये और आग को बुझाना हमारे बस की बात अगर नहीं है तो उससे बचने की कोशिश करनी चाहिये। ” मैं बंधा हुआ हूं ” ऐसा सोचना ही सबसे बड़ा अज्ञान है। इसलिये ‘मैं मुक्त हूं’ ये ज्ञान है। उसकी अनुभूति का नाम ही मुक्ति है। मुक्ति मांगने की, देने की, लेने की वस्तु नहीं है। स्वयं अपने आपको अर्पित कर देना ही आत्म निवेदन है। उसको अपना स्वरूप मान लेना आत्म निवेदन है। अपना अहंकार निवृत्त करके प्रभु चरणों में अर्पित होना ही आत्म निवेदन है। दुनियां में जितने लोग हैं मुझे और आप को स्नेह जरूर करते हैं। लेकिन कोई न कोई हेतु, कोई न कोई सूक्ष्म स्वार्थ या कारण जरूर होता है। उसके बिना मानव संसार में स्नेह किसी को कर ही नहीं सकता। केवल परमात्मा ही ऐसे है जो जीव को बिना हेतु स्नेह करते हैं। सोचता हूं न जाऊंगा कूचे में कभी उनके। लेकिन होता है कि हर रोज कोई काम निकल आता है।। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन श्री दिव्य घनश्याम धाम गोवर्धन आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।