पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भागवतमहापुराण वेदरूपी कल्पवृक्ष का पका हुआ फल है। जिसमें गुठली, छिलका जैसा कुछ त्याज्य नहीं है, केवल रस ही रस है। अतः भक्तों को यह रस जीवन भर पीते रहना चाहिये। यदि कानों के द्वारा इस रस को पिया गया तो निश्चित है कि जीवन में शांति और अंत में मुक्ति प्राप्त होगी। महर्षि वेदव्यास ने 17 पुराणों की रचना की एवं एक लाख श्लोकों वाला महाभारत लिखकर भी अशांति का अनुभव करते रहे। अंत में देवर्षि नारद के उपदेश से व्यास जी ने भागवत की रचना की और उन्हें शांति प्राप्त हुई। जैसे भांग आदि मादक वस्तुओं का सेवन करने से नशा बुलाना नहीं पड़ता, नशा अपने आप आता है, इसी तरह भागवत पढ़ने-सुनने वालों को भक्ति रस अनायास प्राप्त हो जाता है। भागवत कथा श्रवण का बहुत बड़ा फल है। गंगा तट पर महाराज परीक्षित को शुकदेव भगवान कथा सुनाने बैठे, तो देवता वहां आ गये।उनके हाथ में अमृत का कलश था। उन्होंने शुकदेव भगवान् को प्रणाम किया।शुकदेव भगवान् ने पूछा- कैसे पधारे आप लोग? महाराज हमने सुना है कि राजा परीक्षित को तक्षक काटने का श्राप मिला है। तक्षक काटेगा तो ये समाप्त हो जायेंगे,
हम इनको बचाने आये हैं। कैसे बचाओगे? शुकदेव जी ने पूछा। ये अमृत पिला दीजिये, हजार सर्प काटेंगे तो भी इनकी मृत्यु नहीं होगी। बहुत अच्छी बात है। श्री शुकदेव जी ने पूछा- इसके बदले में आप लोग क्या चाहते हो? देवताओं ने कहा- हमको यजमान बनाकर भागवत की कथा स्वर्ग में चलकर सुना दीजिये। श्री शुकदेव जी ने कहा अमृत, कांच का टुकड़ा है और भागवत है पारस मणि। जैसे कांच के टुकड़े के बदले में पारसमणि नहीं दी जा सकती, इसी तरह अमृत के बदले में आप सबको कथा नहीं सुनाई जा सकती है। कथा तो साधकों के लिये है। राजा परीक्षित ने शुकताल में श्रीमद् भागवत कथा श्रवण किये, कथा पूर्ण हुई और महाराज परीक्षित सीधे बैकुंठ जा रहे थे, देवता पुष्प वर्षा कर जय जयकार कर रहे थे। पितृपक्ष में भागवत सुनने की विशेष महिमा है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर, (राजस्थान)।