पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि जब तक जिज्ञासा नहीं है, तब तक तत्व की प्राप्ति नहीं हो सकती। भूख न हो और दस प्रकार की चीजें लाकर कोई सामने रख दे,सब व्यर्थ है। प्यास न हो, सामने रखे पानी का क्या उपयोग ? भूख लगने पर भोजन में मिठास का अनुभव होता है, प्यास लगने पर पानी में मिठास का अनुभव होगा। इसी प्रकार पहले ईश्वर तत्व, मां भगवती के स्वरूप को जानने की जिज्ञासा जागे, तब परम तत्व का बोध होता है। और श्रवण करने में आनंद भी आता है। इसलिए पहले जिज्ञासा जगाइए। सदाचरण, सत्कर्म और सत्संग करने से ईश्वर के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न होती है। सात्विक चित्त में ही ईश्वर प्राप्ति की जिज्ञासा उत्पन्न होती है। दुनियां में भाग्यवान कौन है, जो वैराग्यवान है। संसार से जिनके मन का कोई संबंध नहीं, जिसका मन संसार के विषयों को विष समझकर त्याग चुका है। जिनके लिए श्रृंगार अंगार हो चुका है। जिनके लिए भूषण भार हो चुके हैं। जो अपने- आपको संसार से हटाकर परमात्मा से मन जोड़ चुके हैं। उनके जीवन में सदैव शांति रहती है। विकार घर में नहीं मन में है। विकार घर में नहीं है, विकार मन में है। घर छोड़ने से भी मन नहीं छूटेगा, मन साथ ही जायेगा और विकार मन में भरे पड़े हैं, जहां भी जायेंगे वहीं कुछ न कुछ उपद्रव शुरू कर देंगे। और यदि आपने मन बस में कर लिया, तब घर में रहो या बन में रहो ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। मन को वश में करने का सबसे सहज उपाय है, नामाभ्यास और सत्संग, अधिक से अधिक भगवान के नाम का जप किया जाय, इससे मन सहज बस में हो जाता है। जे जन रूखे विषय रस, चिकने राम स्नेही। तुलसी जपों मन खूंद समन कानन बसहिं या गेही। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना।