राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रेष्ठ धर्म का विचार श्रीपद्ममहापुराण में विकुंडल ने देवदूत से प्रश्न किया कि मनुष्य किस कर्म के अनुष्ठान से यमलोक का दर्शन नहीं करते? तथा कौन- सा कर्म करने से वे नरक में जाते हैं? देवदूत ने कहा- जो मन, वाणी और क्रिया द्वारा कभी किसी भी अवस्था में दूसरों को पीड़ा नहीं देते, वे यमराज के लोक में नहीं जाते। अहिंसा परम धर्म है, अहिंसा ही श्रेष्ठ तपस्या है तथा अहिंसा को ही मुनियों ने सदा श्रेष्ठदान बताया है। जो मनुष्य दयालु हैं, वे सबको अपने ही समान देखते हैं। जो अपनी जीविका के लिये जलचर और थलचर जीवों की हत्या करते हैं। वे काल सूत्र नामक नरक में पड़कर दुर्गति भोगते हैं। इसलिये जो दोनों लोकों में सुख पाना चाहते हैं, उस धर्मज्ञ पुरुष को उचित है कि इस लोक और परलोक में मन, वाणी तथा क्रिया के द्वारा किसी भी जीव की हिंसा न करें। प्राणियों की हिंसा करने वाले लोग दोनों लोकों में कहीं भी सुख नहीं पाते। जो किसी जीव की हिंसा नहीं करते, उन्हें कहीं भी भय नहीं होता। जैसे नदियां समुद्र में मिलती हैं, उसी प्रकार समस्त धर्म अहिंसा में लय हो जाते हैं- यह निश्चित बात है। भक्तप्रवर! जिसने इस लोक में संपूर्ण भूतों को अभय दान कर दिया है, उसीने संपूर्ण तीर्थों में स्नान किया है तथा वह संपूर्ण यज्ञों की दीक्षा ले चुका है। वर्णाश्रम धर्म में स्थित होकर शास्त्रोक्त आज्ञा का पालन करने वाले समस्त जितेंद्रिय मनुष्य सनातन ब्रह्मलोक को प्राप्त होते हैं। छोटी काशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धाश्रम) का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में- चातुर्मास के पावन अवसर पर श्रीपद्ममहापुराण के षष्ठम दिन स्वर्गखंड की कथा का गान किया गया। कल की कथा में पाताल- खंड की कथा का गान किया जायेगा।