राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि देवो ने अमृत पिया रहे सदा भयभीत। वो जग में निर्भय हुए मातृचरण में प्रीति। हम भारतवासियों के पास दो कीमती शब्द हैं ऊँ और राम, मां दोनों में विराजमान है मां से सुंदर कुछ नहीं है। मां से मिठास किसी वस्तु में ज्यादा नहीं है। भगवान कृष्ण ने अवतार लिया, बैकुंठ में लक्ष्मी हैं, मेरे पास सुदर्शन है, लेकिन मेरे पास मां का स्नेह नहीं है। एक माँ से संतोष नहीं हुआ तो भगवान ने दो मां बनाई। प्रथम देवकी मां के यहां भगवान प्रकट हुये, दूसरी मां यशोदा का स्नेह प्राप्त किया। बैकुंठ में वह आनंद नहीं है जो मां की गोंद में है। राम जी ने अवतार लेकर तीन मां बनाया।
विष्णु सहस्रनाम में भगवान के हजार नाम हैं। गोपाल सहस्त्रनाम में कृष्ण के हजार नाम हैं। लेकिन जब उस परमात्मा को कोई माता कहता है, तो प्रभु का वात्सल्य फूट पड़ता है और वह चौबीस अवतार लेकर धरती पर आते हैं। भगवान को सबसे प्यारा नाम मां है। कहते हैं देवताओं और दानवों ने समुद्र मंथन किया। अमृत का कलश ले गये। हम भारतवासियों के पास माँ ही अमृत कलश के समान है। देवताओं को अमृत का कलश वह प्यार नहीं दे पाया , जो मां से हम भारतवासियों को मिला है। माँ तो अमृत से भी अधिक पावन है। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धाश्रम-वात्सल्यधाम) का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में- चतुर्मास के पावन अवसर पर, श्री मार्कंडेय महापुराण के सप्तम दिवस नवदुर्गा की कथा का गान किया गया। कल की कथा में दुर्गासप्तशती का गान होगा।