राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि शौनकादि ऋषियों ने पूछा कि हमने सुना है भगवान शंकर पर चढ़ाया हुए नैवेद्य प्रसाद के रूप में नहीं लेना चाहिए। इससे लोगों को भ्रम होता है,इसका आप निवारण करें। इस प्रश्न का जो उत्तर सूत जी ने श्री शिव महापुराण में दिया – वह समझने योग्य है।
सूत जी ने कहा कि शिव-भक्तों के लिए शिव का नैवेद्य महाप्रसाद है। शिव का महाप्रसाद प्राप्त करने वाला व्यक्ति जन्म-जन्म के पापों के नष्ट हो जाने से सीधे परमधाम को प्राप्त करता है। शिव का प्रसाद,जो यह कह कर कि कुछ समय बाद ले लूंगा,छोड़ देता है,उसे महापाप लगता है। शिव को अर्पित नैवेद्य शिव-भक्त के लिए आग्रह्य नहीं है लेकिन जो शिव भक्त नहीं है,पर शिव के प्रति उनकी श्रद्धा है,उनके बारे में जो निर्णय है,वह भी स्मरण करने योग्य है। शिव-शंकर के साथ यदि शालिग्राम रख दिए जाएं,तब उनका प्रसाद महाप्रसाद है। इसमें कोई संशय नहीं करना चाहिए या पंच-देव उपासना का प्रसाद महाप्रसाद है,उसे त्यागना नहीं चाहिए। द्वादश ज्योतिर्लिंगों का प्रसाद या प्राचीन सिद्ध शिवलिंग का प्रसाद, जिससे लोगों को सिद्धियां प्राप्त हुई, ऐसा प्रसाद महाप्रसाद होता है।
जो व्यक्ति शिवलिंग को स्नान करवा कर, तीन बार आचमन कर लेता है या जल का छींटा ले लेता है,वह ब्रह्महत्या तक के भयानक पाप उसके नष्ट हो जाते हैं। एक बात ध्यान रखने योग्य है कि जहां चंड का भाग है,उसे ग्रहण नहीं करना चाहिए। जो चीज शिवलिंग के ऊपर रख दी जाती है, वह आग्रह्य है। शंकर ने अपने पार्षद चंड को यह अधिकार दे रखा है कि शिवलिंग के ऊपर जो प्रसाद रख दिया जाएगा, वह चंड का होगा। यदि सिर्फ पिंडी का पूजन कर रहे हो, तब प्रसाद पिंडी से थोड़ा दूर रखकर लगाओ अथवा मूर्तियों के सामने रखकर लगाया गया प्रसाद अग्राह्य नहीं है। इसमें कोई संशय नहीं है। यह भगवान शंकर का आदेश मिला नंदी को, नंदी ने सुनाया सनत कुमार को, और सनत कुमार ने सुनाया व्यास जी को,जो श्री सूत जी महाराज ने शौनकादि ॠषियों को सुनाया। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी,दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग,गोवर्धन,जिला-मथुरा,(उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)