शिव पुराण का हृदय है काशी: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रगट होने वाले भगवान् भोलेनाथ हम आप सबका अभीष्ट करते हैं। काश्यते प्रकाशयते इति ज्ञानम्’ जहां ज्ञान का प्रकाश होता है, उसका नाम काशी है। काशी का एक नाम है चित्त-प्रकाशिका। चित्त कहते हैं ज्ञान को। जहां ज्ञान का स्वाभाविक प्रकाश हो, जहां रहने वालों के चित्य में ज्ञान का सहज प्रकाश हो, उसे कहते हैं- चित्त प्रकाशिका काशी। यहां एक अर्थ और किया गया है- कर्षणात् काशी- जो पापों को आकर्षित करके, खींच कर समाप्त कर दें, उसका नाम काशी है। विश्वेश्वर- भगवान् शंकर ने काशी कैसे बनाई? सृष्टि कैसे हुई और अविमुक्त क्षेत्र में विश्वनाथ कैसे विराजमान हुए? बड़ी सुंदर कथा है। शिव पुराण का हृदय है काशी। काशी भगवान शंकर का सर्वस्व है। आप काशी का केवल स्मरण भी करते रहें तब भी भगवान् आप पर प्रसन्न हो जाएंगे। एक बार काशी का दर्शन कर लो और बाद में प्रातः काल प्रतिदिन काशी का स्मरण कर लो, मानसिक रूप से गंगा स्नान कर लो और मानसिक रूप से विश्वनाथ भगवान का दर्शन कर लो, तब भी आपको काशी वास का फल मिलेगा। अब यह आपकी सावधानी है कि आप प्रतिदिन गंगा-स्नान करते हैं या नहीं। काशीपुरी की स्थापना कैसे हुई? मूल-ज्योति निराकार है, निर्विकार है, अचिंत्य है, अभेद्य है, निर्गुण और निष्क्रिय तत्व है।

शिव पुराण में यह आप अनेक बार सुन चुके हैं कि उस मूल ज्योति से भगवान् शंकर महेश्वर के रूप में प्रगट होते हैं। महेश्वर ने अपने द्वारा श्रीमन् नारायण और प्रकृति को प्रकट किया। श्रीमन्नारायण ने प्रगट होकर चारों ओर देखा लेकिन उन्हें कुछ नजर नहीं आया। निराकार, शून्य आकाश केवल चेतन ही चेतन है। आनन्दमात्र ब्रह्म भौतिकवादी जिसे जड़ाकाश समझते हैं, वास्तव में यह चिदाकाश है यह शब्द भगवान् शंकर की स्मृति में भी आता है।चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्, यह दिखने वाला आकाश अज्ञानियों को जड़ाकाश के रूप में भाषित होता है। जिनका तीसरा नेत्र खुल गया है, जिनकी ज्ञान दृष्टि खुल गई है, उन्हें यह चिदाकाश के रूप में दिखाई देता है। चेतन के रूप में दिखाई देता है, उस चेतन रूप में ही वह निवास करता है चेतन के केंद्र परमात्मा है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। जय श्री सीताराम।

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