संत अपने वचनों से हमें प्रदान करते है शांति: दिव्य मोरारी बापू

राजस्‍थान/पुष्‍कर। परम पूज्‍य संत श्री दिव्‍य मोरारी बापू ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण की बाल- लीलाओं माखन चोरी लीला अत्यंत प्रसिद्ध है। माखन भगवान को बहुत प्रिय है। माखन के लिए चोरी भी करते हैं। इतना प्रिय क्यों है? भक्तों का प्रतीक है, भक्तात्मा का प्रतीक है माखन। भक्त भगवान को प्रिय है माखन भी प्रभु श्रीकृष्ण को प्रिय है। दूध में माखन होता है, दिखाई नहीं पड़ता। उसी प्रकार से तत् तत् शरीरों में आत्मा रहती है, दिखाई नहीं पड़ती। समय रहते अगर माखन न निकाल लिया जाय तो तीन-चार दिन में दूध विकृत हो जायेगा और उसके साथ वह माखन नष्ट हो जायेगा। विधिपूर्वक निकाल लिया जाय तो नष्ट होने का भय समाप्त हो जाता है। उसको घी बनाकर रख लें, फिर वर्षों-वर्ष रहेगा नष्ट नहीं होगा। उसी प्रकार दुग्ध रूपी शरीर में आत्मा रूपी घृत विद्यमान है। समय रहते सत्संग, साधन, भक्ति से आत्मा रूपी घृत को अलग नहीं कर लिया अर्थात् आत्मबोध प्राप्त नहीं कर लिया। तो देह के नाश के साथ आत्मा का भी पतन हो जायेगा। कैसे करें? जैसे गोपियां करती हैं। दूध को पहले वह खौलाती हैं, ठंडा करती हैं, गोपियां सद्गुरु हैं। संत श्री दिव्‍य मोरारी बापू ने आगे कहा कि हम दैहिक, दैविक, भौतिक ताप से तपने लगते हैं तो संत अपने वचनों से हमें शांति देते हैं। सत्संग के जल का छींटा देकर दूध की उस गर्मी को शांत करते हैं। पूरे ठंडे दूध का दही नहीं बनता। थोड़ा गर्म में दही डालकर छोड़ दिया जाता है। हिलाना, डुलाना बंद कर दिया जाता है। 

दही वन जायेगा, दही बनना क्या है। संतप्त मनुष्य, संत रूपा गोपी, सत्संग रूपी छीटा, थोड़ी गर्मी- दुःखों की स्मृति बनी रहती है। दही का जावन क्या है, संत महात्मा दीक्षा देकर, उपदेश देकर दही शिष्य हृदय में डाल देते हैं। दीक्षा ही दही है, जावन है। विधि क्या है, गुरु जी ने जो दीक्षा के समय विधि बताई उसमें हेर-फेर नहीं करना। निष्ठा पूर्वक उसका पालन करना, उसको हिलाने डुलाने की मना है। क्या होगा भक्त के हृदय में भक्ति का दही जम जायेगा। अभी भी संघर्ष करना पड़ेगा। दीक्षा ले लेने से प्रारब्ध नहीं मिटेगा, प्रारब्ध की मथानी डालकर दही के टुकड़े-टुकड़े कर दिये जाते हैं। उसी मंथन में सार ऊपर की तरफ उठता है। जो ऊपर उठ वह मक्खन और जो नीचे चला गया, वही छाछ कहा जाता है। प्रारब्ध की मंथनी पड़ने से ऊपर की तरफ बढ़ता है वही जीवात्मा मक्खन बन जाता है। और जो नीचे रह जाता है, वही छाछ वन जाता है। जो शरीर की सत्ता से ऊपर उठ जाता है, अब उसे डूबाओ तो भी ऊपर आ जायेगा। अब वह साथ में से अलग है। अरे से जीवात्मा जो देह अभिमान से परे है, वहीं मक्खन है वह भगवान को की प्रिय है। दूध नदी में डाल दिया समाप्त हो गया, माखन डाल दो उठा लो। संसार की नजर बचाकर भगवान ऐसे मक्खन चुरा लेते हैं। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में पाक्षिक भागवत कथा के षष्टम दिवस मृद भक्षण लीला और दामोदर लीला की कथा का गान किया गया। कल की कथा में गिर्राज जी की मंगलमय कथा का वर्णन किया जायेगा।

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