पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भागवत धर्म अर्थात् वैष्णव धर्म रूपी राजमार्ग पर चलने वाला आंखें मूंदकर भी दौड़ता चला जाये, तब भी न कभी फिसलेगा और न कहीं गिरेगा। यानास्थाय नरो राजन् न प्रमाद्येत कर्हिचित। धावन् निमील्य वा नेत्रे न स्खलेन्न पतेदिह।। भागवत धर्म अर्थात् वैष्णव धर्म का पालन कैसे किया जाता है? कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुद्धयाऽऽत्मना वानुसृतस्वभावात्। करोति यद् यत् सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयेत्तत्।। वैष्णव धर्म का पहला सूत्र है कि मन, वाणी, शरीर और बुद्धि इनसे जो भी कर्म हो, उसका फल भगवान् को समर्पित कर दिया जाये। वैष्णव अपने आपको भगवान् का दास मानता है, मुनीम मानता है। जैसे सेठ दुकान पर अपना मुनीम बिठादे, तब उस दुकान से जो लाभ होगा, वह सेठ का होगा, मुनीम तो अपनी तनख्वाह लेगा। वैष्णव अपने को ईश्वर का मुनीम मानता है। वह अपने घर को अपना नहीं मानता। वह घर को, परिवार को, सारे सदस्यों को ईश्वर का मानता है और प्रभु ने हमें इनकी सेवा के लिये नियुक्त किया है। यह शरीर भी उस प्रभु ने बना कर दिया है। इसीलिए इस शरीर से हम जो भी कर्म करेंगे, उसका फल ईश्वर को देंगे। पुत्र उत्पन्न कर लिया लेकिन वह ईश्वर का है, धन कमा लिया लेकिन वह ईश्वर का है। उसका हम यथोचित उपभोग कर सकते हैं, दुरुपयोग नहीं करना, धर्म कार्य में लगाना। जितना उचित आवश्यक है,उतना उपयोग कर लेना बाकी परमार्थ के कार्यों में सदुपयोग करना। कर्म फल की इच्छा नहीं रखना। संसार को ही भगवान् के रूप में देखते रहना। यही वैष्णवता है। राग द्वेष नहीं रखना। आकर चारि लाख चौरासी। जाति जीव जल थल नभ वासी।। सिया राम मय सब जग जानी। करहु प्रनाम जोरि जुग पानी।। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)