पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि दूसरे अध्याय के समापन पर भगवान् ने कहा-समस्त कामनाओं को जो त्याग देता है। उसे शांति प्राप्त हो जाती है। तीसरे अध्याय के आरंभ में अर्जुन ने प्रश्न कर दिया- कामनाओं का त्याग सन्यास से होता है, फिर आप मुझे सन्यासी बनने से क्यों मना करते हैं? आप मुझे इस घोर कर्म में क्यों लगा रहे हैं? समस्त कामनाओं का त्याग करके मुझे भजन करने दें। भगवान् कृष्ण ने कहा देखो पार्थ! संसार में ईश्वर को प्राप्त करने के दो मार्ग हैं- सांख्ययोग और कर्मयोग। सब कुछ त्याग कर, सन्यास लेकर भजन करना सांख्ययोग है, कर्म करते हुए फल की इच्छा त्याग देना, आसक्ति का त्याग करके कर्तव्य बुद्धि से कर्म करना कर्मयोग है। सन्यास योग की अपेक्षा कर्मयोग श्रेष्ठ है। दुनियां में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं अर्जुन, जो बिना कर्म किये एक क्षण भी रह सके।आप बैठे हुए भी कर्म करते रहते हैं। आपका मन यदि किसी विषय में सोच रहा है तो वह भी कर्म है-मानसिक कर्म । उससे भी आप कुछ न कुछ कर्म करते रहते हैं। हर व्यक्ति को कर्म करना पड़ता है, भोजन बनाना भी एक कर्म है और थाली से ग्रास उठाकर मुख्य में देना भी कर्म है। बिना कर्म किये एक क्षण भी कोई व्यक्ति नहीं रह सकता। जब कर्म करना ही है तो इस ढंग का कर्म करें कि-कर्म करते हुए हम संसार में आसक्त न हों।कर्म का फल इस संसार में हमें छू न सके। स्वामी रामकृष्ण परमहंस कहा करते थे, तवे पर से रोटी उठानी है,
चिमटे से उठाओ तो ज्यादा सुविधा रहती है। रोटी को सेंकना है, चिमटे से पकड़ कर सेंकोगे तो रोटी बढ़िया सिंक जायेगी, हाथ नहीं जलेगा। कटहल की सब्जी यदि खानी है, खाने का शौक है, तो कटहल काटने से पहले हाथ पर तेल लगा लो। उससे जो दूध निकलता है वह हाथ पर चिपक कर कष्ट देता है। यदि तेल लगा लिया जाय तो कटहल काटने के बाद हाथों पर असर नहीं करता। सब्जी खाने का स्वाद भी मिल जाये और उसके दूध से बचाव भी हो जाये- हम रोटी बनायें, खायें, और तृप्त हों और जलने से भी वच जायें, उसी तरह हम कर्म करते रहें और कर्म के बंधन से बच जायें- यही योग का सबसे बड़ा कौशल है।योगः कर्मसु कौशलम्-हम कर्म को इस कुशलता से करें, इस सावधानी से करें कि कर्म हो जाये और उसका बंधन हमारे जीवन में न आये। कुछ लोग शरीर से कर्म को छोड़ देते हैं पार्थ, लेकिन मन से सदा ही विषयों का चिंतन करते हैं। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि वह मूढ आत्मा हैं, वह मिथ्या चारी हैं, वह ढोंगी हैं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग ,गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।