हमें हृदय से करना चाहिए ईश्वर का चिंतन: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, पुनरपि जन्मं पुनरपि मरणं पुनरपि जननी जठरे शयनं। इहि संसारे खलु दुस्तारे कृपया पारे पाहि मुरारे।। भज गोविन्दं,भज गोविन्दं,गोविन्दं भज मूढ़ मते। संत महापुरुष कहते हैं-हे मानव! गोविंद के बाद पद्मों का चिंतन कर ले, यह समय है, नहीं तो फिर पछताना पड़ेगा, बार-बार जीने और मरने का क्रम टूटेगा नहीं। इसीलिये राजाओं ने अपना राज्य, पद त्याग दिया। श्री ऋषभदेव भगवान् ने अपने सौ पुत्रों, परिवार और राज्य का त्याग कर दिया और जंगल में तप करने चले गये। स्वयंभुव मनु ने अपना राज्य त्याग दिया, भारतवर्ष की यही परंपरा रही है कि अंत में सब कुछ छोड़कर परमात्मा के चिंतन में डूब जाना। यह मत देखो कि अभी शरीर हृष्ट-पुष्ट है, अभी थोड़े दिन और घर का काम समेट लें या बेटे पोतों से स्नेह कर ले, फिर भजन कर लेंगे, ऐसा नहीं सोचना। जब कथा सुनने को मिल जाये, और मन बात को मान ले, अब वृद्धावस्था आ गई है, अब देर मत करो, जल्दी से जल्दी भजन में लग जाओ। घर का काम करना पड़े तो शारीरिक रूप से उसे कर लो, लेकिन ईश्वर का चिंतन हृदय से करो। हमारी उल्टी गंगा बहती है। हम ईश्वर का भजन सिर्फ दिखावे के लिए ऊपर ऊपरी तौर से करते हैं, और घर के काम में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं। होना यह चाहिए कि- हम घर का काम ऊपरी मन से करें, और परमात्मा का चिंतन गहराई से करें और जब यह निश्चित हो जाये कि स्वर्ग भी जाकर वापस लौटना पड़ता है, तो यह मन मान लो कि संसार के सुख भी व्यर्थ हैं और स्वर्ग के सुख भी व्यर्थ है। ईश्वर को प्राप्त करो। अब यदि ईश्वर प्राप्त करना है तो सबसे पहले गुरु बनाना पड़ता है, सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा,(उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

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