जम्मू कश्मीर। जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में ग्लेशियरों के सिकुड़ने से जनजीवन पर खतरा बढ़ता जा रहा है। पिछले 20 साल में ग्लेशियरों का चार फीसदी हिस्सा पिघल गया है। इस वजह से छह नई झीलें बन गई हैं। इन झीलों के फटने से कभी भी बाढ़ आ सकती है, जिसका असर चिनाब घाटी में नदी से सटे आबादी वाले इलाकों और पनबिजली परियोजनाओं पर पड़ सकता है। केंद्रीय विश्वविद्यालय जम्मू में पर्यावरण विज्ञान विभाग के शोधकर्ता ने रिमोट सेंसिंग से गहन अध्ययन के बाद यह खुलासा किया है। शोधकर्ता के अनुसार ग्लेशियर पिघलने का मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग है। वाड़वान के बुट बेसिन के ब्रह्मा और अर्जुन ग्लेशियर में चार झीलें और पाडर मचेल से 12 किलोमीटर दूर बुट बेसिन के बुजवास ग्लेशियर में दो झीलें बन चुकी हैं। हालांकि इन झीलों को अभी शोधकर्ताओं ने नाम नहीं दिया है। चिनाब वेली के ग्लेशियरों पर पिछले तीन वर्षों से शोध जारी है। शोध के मुताबिक ग्रीन हाउस गैसें तेजी से बढ़ रही हैं, जिसका असर पर्यावरण पर पड़ रहा है। किश्तवाड़ के ग्लेशियरों के पिघलने से बनीं झीलों के अचानक फटने या ओवरफ्लो होने से निचले क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। चिनाब नदी पर बने सलाल, बगलिहार, दुलहस्ती पनबिजली परियोजनाओं के बांध भी बाढ़ के खतरे की जद में हैं। ग्रीन हाउस गैसों पर नियंत्रण न होने पर हालात और बिगड़ सकते हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालय जम्मू में पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. सुनील कुमार धर ने बताया कि जम्मू-कश्मीर की चिनाब घाटी के ग्लेशियरों पर पिछले तीन वर्षों से शोध चल रहा है। इसका मकसद ग्लेशियरों के सिकुड़ने का पता लगाना है। रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट डाटा मुहैया करा रही है। उन्होंने कहा कि शोध में पता चला है कि चार फीसदी ग्लेशियर सिकुड़ चुके हैं। इसका कारण ग्लोबल वार्मिंग और गैसों का बढ़ना है। सरकार को गैसों पर नियंत्रण करने के लिए ठोस नीति अपनानी चाहिए।