भागवत में लिखी है जीवन के व्यापार को समेटने की पद्धति: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा,।।संसार से मन की गति को समेटकर भगवान् के साथ जुड़ने की पद्धति।। अपने जीवन में संसार की तरफ चल रही गति को समेट कर भगवान् की तरफ गति करना है। एक व्यक्ति कश्मीर की गतिविधियों से आतंकित हुआ, और अपनी फैक्ट्रियां, अपनी दुकान, अपने मकान को समेटकर हरियाणा में अपना काम शुरू करना चाहता था और धीरे-धीरे सब कुछ समेट रहा था। इसी तरह साधक को भी करना है। जीवन का जो प्रवाह संसार की तरफ चल रहा है, उसको समेट कर भगवान के साथ जोड़ना है। इसके लिए जीवन के व्यापार को समेटना है और जीवन के व्यापार को समेटने की पद्धति भागवत में लिखी है।
भागवत में लिखा हुआ है कि- सबसे पहले वाणी को मन में हवन करो- अर्थात् मौन हो जाओ। यह वाणी का मन में हवन है। विषयों से इंद्रियों को मोड़कर इनको प्राणों में हवन करो। मन को ले जाकर बुद्धि में हवन करो और बुद्धि को ले जाकर माया में, माया शक्ति को प्रकृति में और प्रकृति को ले जाकर ब्रह्म में हवन करो। जैसे मकड़ी जाला बुनती है और फिर वह उलटी होकर निगल जाती है। इसी तरह मूल ईश्वर है, जीव भी ईश्वर का अंश है । ईश्वर से यह बाहर आया और बाहर आकर फैलते-फैलते इसने अपना काफी विस्तार कर लिया और इसमें मकड़ी के जाल जैसा फंस गया। अब जैसे वहां से चला था ठीक वैसे वापस लौटना है, उनसे वापस मुड़ना है। धृतराष्ट्र ने वैसा ही किया। उन्होंने मौन ले लिया, मन में चले गये। मन को बुद्धि में ले गये, बुद्धि को माया में जाकर लीन कर दिया और माया-शक्ति को ब्रह्म में लीन कर दिया। जगत के व्यापार से पहले इंद्रियों को विषयों से मोड़ा। सामान्य जीव की इंद्रियां बाहर की तरफ उन्मुख है। आंख चाहती है कि सुंदरता देखने को मिले। कान चाहते हैं सुंदर शब्द सुनने को मिले। जिह्वा चाहती है बढ़िया स्वाद मिले। नासिका चाहती है की सुगंध प्राप्त हो।त्वचा चाहती है कि कोई सुंदर, सुकोमल आलिंगन करने को मिले। ये इंद्रियों के भोजन है। इंद्रियों में इतनी भूख है, इतनी प्रज्वलित आग है कि सारे संसार के भोग एक व्यक्ति की इंद्रियों को दे दिये जायें, फिर इंद्रियों से पूछा जाये कि तृप्ति हो गई तो वह कह देंगी, ‘ न अलम् न अलम् ‘ अभी नहीं, अभी नहीं। आज विश्व में चार अरब लोग हैं। यदि सारे विश्व का सुख एक व्यक्ति को तृप्त नहीं दे सकता, तो क्या चार अरब व्यक्ति तृप्त हो सकेंगे। विवेक पूर्वक विचार करके जो कुछ प्रारब्ध से प्राप्त है उसमें संतुष्ट रहें और ईश्वर की आराधना करें।मंगल होगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

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