नई दिल्ली। आज हम बाताने जा रहे है रामायण-महाभारत के उस प्रहार के बारे में जिससे बच पाना मुश्किल ही नही बल्कि असंभव है। जिसे विज्ञान मूर्त आकार देने के करीब पहुंच गया है आज इसे आधुनिक युग का ब्रह्मास्त्र कहा जा रहा है बताया जा रहा है कि इसके प्रहार को दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक पाएगी। इसके बन जाने से कुछ ही वर्षो में दुनिया में युद्ध की पूरी रूपरेखा बदल जाएगी ।
इस आधुनिक युग के ब्रह्मास्त्र के निर्माण में दुनिया की सभी प्रमुख महाशक्तियां लगी हुई हैं। जबकि इसमें सबसे आगे है दुनिया का एक सबसे बुद्धिमान लोगों का देश। इस देश को हम सभी जापान नाम से जानते हैं। आज हम जिस ब्रह्मास्त्र की बात कर रहे हैं वह छठी पीढ़ी का लड़ाकू विमान है। इस वक्त दुनिया की सभी प्रमुख महाशक्तियों के पास साढ़े चार से पांचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान हैं। कई अन्य महाशक्तियां अभी पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान विकसित करने में लगी हैं। जिससे अनुमान लगाया जा सकता हैं कि अपने देश भारत के पास मौजूद राफेल लड़ाकू विमान भी पांचवी पीढ़ी का नहीं है। इसे 4.5वीं श्रेणी में रखा जाता है। इसे फ्रांस की डसॉल्ट कंपनी द्वारा बनाया गया है। दुनिया अभी पांचवीं पीढ़ी के आसपास घूम रही है, लेकिन जापान और अमेरिका छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान के निर्माण के बेहद करीब हैं।
पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान
अपने देश भारत के पास मौजूद सबसे आधुनिक लड़ाकू विमान राफेल को 4.5वीं पीढ़ी का माना जाता है। जबकि इसमें कई अत्याधुनिक फीचर्स हैं जो पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान जैसे हैं। पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान होने की ऐसी धारणा है जो इस जेनरेशन के लड़ाकू विमान में 21वीं सदी में विकसित हुए तकनीक लगे हैं। इसकी एक सबसे बड़ी क्वालिटी है इसकी स्टील्थ क्षमता है। मतलब पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान आमतौर पर दुश्मन के सभी सर्विलांसेज यानी निगरानी तंत्र को मात देने में सक्षम होते हैं। इसे आसानी से कोई भी दुश्मन राष्ट्र देख नहीं सकता। इसके साथ ही ये विमान अपने लक्ष्य को भेदने के क्रम में दुश्मन के राडार को मात देने में सक्षम होते हैं। इसके साथ ही इसमें स्पीड, हमले की सटीकता, भारी मात्रा में विस्फोटक ले जाने की क्षमता जैसे कई आधुनिक फीचर्स हैं। इस वक्त दुनिया के कुछ चुनिंदा देशों अमेरिका, रूस और चीन के पास ही आधिकारिक तौर पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान ऑपरेशनल हैं।
छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान
छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान को ब्रह्मास्त्र कहा जा रहा है। इसे अमेरिका ने लगभग 10 वर्ष पहले विकसित करने का ऐलान किया जबकि चीन ने भी करीब 5 वर्ष पहले इस काम में जुटने का दावा किया है। लेकिन, बड़ी खबर जापान से है। अभी तक जापान ने दुनिया के हथियार बाजार में एंट्री नहीं की थी। दूसरे विश्व युद्ध के बाद हुई ताबाही और अमेरिकी दबाव में जापान ने सैन्य खर्च में भारी कटौती की थी। एक समझौते के तहत अमेरिका ने जापान की सुरक्षा की जिम्मेदारी ली थी। लेकिन, बीते कुछ दशकों से जापान फिर से अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने में जुटा है। ऐसा कहा जाता है कि इलाके में चीन के बढ़ते सैन्य प्रभाव के जवाब में जापान को मजबूरन हथियार बनाने पड़े हैं। यही वजह है कि जापान पिछले कुछ वर्षो से अपने लिए सीधे छठी पीढ़ी का लड़ाकू विमान बनाने में जुटा हुआ है।
मानव रहित और सब कुछ एआई आधारित होगें विमान
रिपोर्ट्स द्वारा मिली जानकारी के मुताबिक छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान के बारे में कोई स्पष्ट रूपरेखा सामने नहीं आई है। लेकिन, ऐसे दावे किए जा रहे हैं कि ये विमान बेहद खतरनाक साबित होंगे। ये मानव रहित और पूरी तरह से आर्टिफिशियल इंजेलिजेंस पर आधारित हो सकते हैं। एक बार लक्ष्य तय कर दिए जाने के बाद ये उसको भेदे बिना नहीं लौटेंगे। इसे विकसित करने के लिए जापान ने हाल ही में इंग्लैंड, ईटली और यूरोप के कई अन्य देशों के साथ समझौता किया है। इस पर खरबों अरब रुपये खर्च किए जा रहे हैं। दूसरी तरफ चीन और रूस भी छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान बनाने में जुटे हुए हैं। रिपोर्ट के मुताबित अगले दशक के शुरू में जापान और अमेरिका के लड़ाकू विमान सामने आ सकते हैं वहीं चीन-रूस के विमान में थोड़ी देरी हो सकती है। जापान की ओर से इस प्रोजेक्ट में उसकी दिग्गज टेक कंपनी मित्सुबिशी काम कर रही है।
चीन-पाकिस्तान के पसीने छूटे
वैश्विक हथियार बाजार में जापान के उतरने से दुनिया का पूरा भू-राजनीतिक समीकरण प्रभावित हो सकता है। दक्षिण चीन सागर और अन्य मोर्चों पर जापान का सीधा टकराव चीन और फिर रूस के साथ है। वैश्विक मसलों पर जापान, अमेरिका और पश्चिमी देशों के करीब है। भारत के साथ भी उसके मधुर संबंध रहे हैं। दूसरी तरफ विज्ञान और तकनीक के मामले में यह देश समय से 50 साल आगे चलता है। इसकी क्षमता दुनिया मानती है। ऐसे में उसके नेतृत्व में विकसित किए जा रहे छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान को दुनिया का सबसे घातक हथियार बताया जा रहा है। इससे चीन के साथ-साथ पाकिस्तान भी परेशान हो सकता है, क्योंकि मौजूदा वक्त में पाकिस्तान, चीन के पिछलग्लू के अलावा और कुछ नहीं है।