पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से परिपूर्ण है- श्रीमहाशिवपुराण। शौनकादि ऋषियों ने पूछा कि जीवों के दोष निकलें, आसुरी संपदा नष्ट हो, और उनको दैवी सद्गुण प्राप्त हों, इसका कोई श्रेष्ठ उपाय कृपा करके हमें बताइये। जिसके अनुष्ठान से अंतःकरण की शीघ्र शुद्धि हो जाती हो, ऐसा कोई निर्मल साधन या उपाय हमें बताइये। यह प्रश्न करके शौनकादि ऋषि बहुत प्रसन्न हुये। सूत जी सुनकर कहने लगे की आप लोग बड़े भाग्यशाली हैं, आपने परम मंगलमय प्रश्न किया है।
समस्त शास्त्रों का सिद्धांत, भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से परिपूर्ण, जिसमें भक्ति के साथ ज्ञान और वैराग्य भी जागृत हो, ऐसा श्रेष्ठ ग्रंथ जो अमृत स्वरूप है, परम दिव्य है, परम कल्याणकारी है, जिसके श्रवण मात्र से मनुष्य परम गति प्राप्त कर लेता है। वह है- श्री शिव महापुराण। श्रीशिवमहापुराण भगवान् शंकर ने स्वयं रचा है। यूं सभी ग्रंथ भगवान् शंकर से ही निकलते हैं। सबके बीज, मूल भगवान् शंकर ही हैं। फिर भी श्रीशिवमहापुराण भगवान् शंकर ने ही प्राचीन काल में रचा था। जिस बैल पर भगवान् शंकर विराजमान होते हैं, उसका नाम नंदी है, भगवान शंकर ने शिव पुराण रचकर पहले अपने प्रिय गण नंदीश्वर को सुनाया था और फिर नंदी से यह पुराण सनत कुमार जी को प्राप्त हुआ था और सनत कुमार जी ने यही पुराण श्रीवेदव्यासजी को सुनाया था, श्रीवेदव्यासजी से मुझे प्राप्त हुआ, ऐसा सूत जी ने कहा है।
विषय की प्रमाणिकता और गंभीरता के लिये उसकी परंपरा का संकेत देना जरूरी होता है। जैसे श्रीमद्भागवत श्रीमन्नारायण ने ब्रह्मा जी को सुनाया, ब्रह्माजी ने नारदजी को सुनाया। नारद जी ने व्यास जी को दिया, व्यास जी ने शुकदेव को दिया। इसी प्रकार श्रीशिवमहापुराण को सबसे पहले भगवान शंकर ने ही रचना की थी। श्रीशिवमहापुराण की कथा श्रवण करने से भक्ति-ज्ञान-वैराग्य की प्राप्ति होती है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)