पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, अविकाराय शुद्धाय नित्याय परमात्मने। सदैक रूप रुपाय विष्णवे सर्वजिष्णवे।। भगवान की वंदना करते हुए महर्षि पराशर कहते हैं- अविकाराय- भगवान का एक नाम अविकार है। अविकार का मतलब, जिनमें कोई विकार नहीं होता। विकार का अर्थ परिवर्तन से है।भगवान में कोई परिवर्तन नहीं होता, इसलिए भगवान अविकार हैं। बाकी सब में विकार होता है। विकार क्या है? छः प्रकार का विकार होता है। जिसे षड् भाव विकार कहा गया है।
निरुक्त में महर्षि याश्क ने इसका वर्णन किया है उत्पद्यते, बर्धते,परिरमणते, स्थीयते,परिणामते, अपक्क्षीयते, विनश्यति। षड् भाव विकारः भवन्ति इति वार्षणः उत्पद्यते अर्थात् उत्पत्ति- कोई वस्तु सबसे पहले उत्पन्न होती है। फिर बर्धते- फिर वह वस्तु बढ़ती है। स्थीयते- एक स्थिति में जाकर विकास रुक जाता है। परिणामते- इसके बाद परिवर्तन होने लगता है।अपक्क्षीयते- फिर थोड़ा-थोड़ा घटने लगता है। विनश्यति- नष्ट हो जाता है।
शुद्धाय- भगवान परम शुद्ध हैं, परम पवित्र हैं। पवित्राणां पवित्रं मंगलानां च मंगलम्- जो पवित्र के भी पवित्र हैं, मंगल के भी मंगल हैं, ऐसे भगवान का एक नाम शुद्धाय है।
नित्याय- भगवान नित्य हैं। नित्य का मतलब जिसकी कभी उत्पत्ति नहीं होती, जिसका कभी विनाश नहीं होता। विनाश उसी का हो जाता है जिसकी उत्पत्ति होती है। जब उत्पत्ति ही नहीं होती तो विनाश कहाँ। जिसकी उत्पत्ति और विनाश दोनों क्रिया नहीं होती वह नित्य है। भगवान नित्य हैं।
यह छः विकार दुनिया की हर वस्तु के साथ लगा हुआ है। ब्रह्मा जी की सृष्टि के साथ भी यह सब विकार लगा है। भगवान इससे परे हैं। जन्म, अस्तित्व, परिणाम, वर्धन भाव,क्षय और नाश से परमात्मा परे हैं।
परमात्मने- भगवान का एक नाम परमात्मा है। परम-आत्मा। आत्मा तो हम आप भी हैं, हम सब आत्माओं से जो श्रेष्ठ हैं वह परमात्मा है।
सदैक रूप रूपाय-भगवान सदा एक रूप में ही रहते हैं। एक रूप का मतलब उनके अंदर कोई परिवर्तन नहीं होता। भगवान सदा किशोरावस्था के ही रहते हैं। उनके रूप में कभी कोई विकार नहीं होता। इसलिए एक रूप रूपाय। एक रूप के साथ-साथ अनेक रूपाय,उनके अनेक रूप भी हैं- राम,कृष्ण, नरसिंह, वामन समस्त रूप भगवान नारायण के ही हैं।
सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।