नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गम्भीर रुख अपनाते हुए रद्द की जा चुकी आईटी एक्ट की धारा 66-ए के तहत एफआईआर दर्ज किए जाने पर जनहित में बड़ा फैसला सुनाया है। इससे उन लोगों को फायदा होगा जिनको आईटी एक्ट के तहत जेल में बंद कर दिया जाता है। विचार और अभिव्यक्ति की आजादी को मौलिक अधिकार देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने 24 मार्च 2015 को आईटी एक्ट की धारा 66-ए को रद्द कर दिया था।
लेकिन अब भी उसके तहत जिस तरह लोगों की गिरफ्तारी की जा रही है, वह न्यायालय की अवमानना है, सरकारों को इस पर जहां गम्भीरता से सोचने की जरूरत है, वहीं स्मार्टफोन के उपभोक्ताओं का दायित्व बनता है कि वह ऐसा कोई पोस्ट न करें जिससे दूसरे की भावना आहत होती हो।
अभिव्यक्ति की आजादी हमारे संविधान ने दी है, लेकिन उसके पालन के लिए कुछ कर्तव्य बनाए हैं जिनका अनुपालन समाज में सामंजस्य के लिए जरूरी है। गैर-सरकारी संघटन पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज सहित विभिन्न संघटनों की याचिकाओं की सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस पर गम्भीर चिन्ता व्यक्त करते हुए आईटी एक्ट की धारा 66-ए के तहत दर्ज मामलों को वापस लेने का आदेश देकर सरकारों को सख्त सन्देश दिया है।
इस धारा के तहत इण्टरनेट पर आपत्तिजनक पोस्ट करने पर तीन साल की कैद की सजा और जुर्माने का प्रावधान है जिसे रद किया जा चुका है लेकिन विभिन्न राज्य सरकारें इसका दुरुपयोग कर रही हैं, जो न्याय की अवधारणा के विपरीत है। सरकारों को सर्वोच्च न्यायालय की भावना का सम्मान करते हुए आईटी एक्ट की 66-ए का प्रयोग पूरी तरह बंद करना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय का फैसला उचित है, इसका अनुपालन किया जाना चाहिए।