पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, शिव भक्त के समक्ष विपत्ति ठहर नहीं सकती। श्रीशिवमहापुराण में लिखा है कि कभी-कभी भजन करने वाला व्यक्ति भी दुःखी नजर आता है और पाप करने वाले, भगवान् की आलोचना करने वाले सुखी नजर आते हैं। इसे पूर्व जन्म का प्रारब्ध माना चाहिए। भजन करने वाला दुःखी नहीं हो सकता, यह सिद्धांत है। पाप करने वाला सुखी नहीं रह सकता,यह सिद्धांत है। यदि भजन करने वाला दुःखी नजर आ रहा है, तब यह पूर्व जन्म का कोई दुष्कर्म है जो प्रारब्ध में आ चुका है और वह भोगकर ही कटेगा। शंकर भक्त के सामने बड़ी विपत्ति दिखाई देगी लेकिन उनके पास आते-आते छोटी बनकर निकल जायेगी। शास्त्रीय सिद्धांत तो यही है कि शंकर भक्त के सामने विपत्ति नहीं आयेगी। भगवान् शंकर से दुःख देने वाले ग्रह भी डरते हैं उनका नाम ही महामृत्युंजय है। शास्त्रों में कर्म तीन प्रकार के बताये गये हैं। प्रारब्ध कर्म, संचित कर्म और क्रियमाण कर्म। पिछले अनंत जन्मों से हमसे जो कर्म हुए हैं उसे संचित कर्म कहा जाता है।
वर्तमान में जो कर्म किए जा रहे हैं इसे क्रियमाण कर्म कहा जाता है, लेकिन जो कर्म फल देना शुरू कर दिए उन्हें प्रारब्ध कर्म कहा जाता है। संचित और वर्तमान दोनों कर्मों को मिलाकर प्रारब्ध तैयार किया जाता है। प्रारब्ध हर व्यक्ति को भोगना ही पड़ता है। भजन करने से संचित और क्रियामाण कर्म समाप्त हो जाते हैं। और प्रारब्ध कर्म के फल को सहन करने की शक्ति आ जाती है। भजन करने से जीवन धन्य हो जाता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)