पीओके में पाकिस्तान की फिर विफलता

करांची। प्राकृतिक आपदा का संत्रास झेल रहे पाकिस्तान को गम्भीर आर्थिक संकट के साथ ही सियासी संकट का भी सामना करना पड़ रहा है। भीषण बाढ़ में एक हजार से अधिक लोगों की मौत हुई है। बाढ़ से विभिन्न क्षेत्रों में भारी तबाही भी हुई है। पाकिस्तान सरकार को जितना ध्यान इन संकटों का सामना करने के लिए देना चाहिए वैसा ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

इससे जनाक्रोश बढ़ गया है। बाढ़ से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को करोड़ों डालर का नुकसान पहुंचा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान में हुई तबाही पर दुख भी जताया है। इस बीच शहबाज की सरकार को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) को प्रान्त बनाने की कोशिश में फिर विफलता हाथ लगी है और पीओके के सभी जिलों में भारी उग्र प्रदर्शन के बाद शहबाज शरीफ को 15वां संविधान संशोधन बिल वापस लेना पड़ा।

यह शहबाज सरकार की पराजय और पीओके की जनता की जीत है। पाकिस्तान की सरकार लम्बे समय से पीओके को प्रान्त का दर्जा देने की कोशिश कर रही है। उसे 25वीं बार भी विफलता का सामना करना पड़ा है। पीओके के अन्तरिम संविधान में संशोधन पारित कराने के पीछे पाकिस्तान सरकार की मंशा कुछ और ही है लेकिन पीओके के सभी दस जिलों की जनता की मानसिकता इसके पक्ष में नहीं है।

इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि पीओके की जनता भारत के पक्ष में अपनी मानसिकता रखती है। वैसे भी पीओके पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है। यह क्षेत्र भारत के हिस्से में आता है जिस पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है। पीओके की जनता पाकिस्तान सरकार के अधीन नहीं रहना चाहती है। पीओके में पाकिस्तान सरकार का विरोध करने पर उन्हें देशद्रोही माना जाता है और इसके लिए उन्हें यातनाएं झेलनी पड़ती हैं। ऐसे लोगों को जेल में भी डाल दिया जाता है।

पीओके में मानवाधिकारों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन होता हैजो उचित नहीं है। पीओके की जनता अपना भविष्य भारत में देखती है और वहां की बहुसंख्यक आबादी भारत के साथ रहना चाहती है। इसीलिए पीओके की जनता ने 15वां संशोधन विधेयक का भारी विरोध किया था और पाकिस्तान सरकार इसे वापस लेने पर विवश हो गई।

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