कोलकाता। पार्थ चटर्जी वर्ष 1998 की पहली जनवरी को तृणमूल कांग्रेस की स्थापना के समय एंड्रयू यूल की अपनी भारी- भरकम पैकेज वाली नौकरी छोड़कर राजनीति में आए तो उन्होंने टिप्पणी की थी, मैं पैसे कमाने के लिए राजनीति में नहीं आया।
यदि यही करना होता तो कारपोरेट की इतनी बढ़िया नौकरी क्यों छोड़ता। अब उसी पार्थ की महिला मित्र अर्पिता चटर्जी के अलग- अलग फ्लैट से 50 करोड़ से ज्यादा की नकदी और पांच करोड़ से ज्यादा के आभूषण और विदेशी मुद्रा की बरामदगी ने यह सवाल खड़ा किया है कि पार्थ का असली चेहरा कौन-सा है। पहले हजारों करोड़ का चिटफंड घोटाला और अब शिक्षा घोटाले में सीधे ममता सरकार में नंबर दो रहे शिक्षामंत्री की गिरफ्तारी इस बात का सुबूत है कि बीते एक दशक या उससे कुछ लंबे अरसे में बंगाल में राजनीति की तस्वीर कैसे बदली है।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि इस घोटाले के खुलासे से यह बात साफ हो गई है कि राजनीति में भ्रष्टाचार का तौर-तरीका पहले के मुकाबले कितना बदल गया है। सामाजिक आईना बताता है कि राजनीतिक भ्रष्टाचार के खुले खेल ने लोकतंत्र को खोखला कर दिया है। आज भी भारतीय लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, लेकिन लोकतंत्र की आड़ में देश के कई हिस्सों में सावन के महीने में पानी की बरसात के साथ नोटों की बारिश होना इसकी सार्थकता पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है।