नई दिल्ली। महंगाई तो एक सार्वभौमिक सत्य है। फिर भी शायद ही कोई सरकार हो जो इसको लेकर निशाने पर न आया हो। कभी महंगाई को विकास के पैमाने से जोड़ा जाता है तो कभी महामारी या युद्ध के नाम पर थोप दिया जाता है लेकिन सच्चाई यह है कि भारत में महंगाई की मार हमेशा एक विशेष तबके पर ही पड़ी है और उसे ही झेलनी पड़ती है।
एक तरफ हम पांच ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था का सपना देख रहे हैं तो दूसरी ओर लाकडाउन से अनगिनत व्यापार व व्यवसाय चौपट हो गए। देखते ही देखते बड़ी संख्या में लोग एकाएक गरीब हो गए। रही सही कसर दो सालों में करोना के पड़े व्यापक प्रभाव ने पूरी कर दी। इधर रूस यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध की विभीषिका के नाम पर अर्थव्यवस्था तबाही की कगार पर पहुंच गया है।
कोरोना में सरकार के राहत पैकेज बड़े उद्योगपतियों को तो जरूर मिला लेकिन आम जनता के हिस्से आया सिर्फ पांच किलो का मुफ्त अनाज। अब सवाल यह है कि इन सबके बीच देश के मध्यम वर्ग की राहत के लिए कौन सोचेगा। मध्यम वर्ग हमेशा ही पिसता रहता है। पहले गरीब तबका महंगाई का शिकार होता था। अब सबसे असर मध्यमवर्ग पर पड़ रहा है।
पिछले दो माह से जिस तरह से पेट्रोल और डीजल के भाव में बढ़ोतरी हो रही है उस पर किसी प्रकार से अंकुश नहीं लग रहा है। एलपीजी, सीएनजी, पीएनजी के दाम बढ़ रहे हैं। इस बढ़ोतरी का असर माल भाड़े पर जबरदस्त रूप से पड़ा और भाड़ा 15 से 20 फीसदी तक बढ़ गया। इन कारणों से खुदरा और थोक बाजार में अनाज, फल और सब्जियों के भाव किसी से छुपा नहीं है। महंगाई का सबसे ज्यादा असर घर की थाली पर पड़ता है। नींबू के दाम ने इस समय जो छलांग लगाई है वह एक इतिहास बन गया है।
यही हालत सब्जियों के दाम, दूध, फल और खाद्य सामग्रियों पर भी पड़ा है। लोहे के सरिया, सीमेंट, गिट्टी आदि की कीमत में आश्चर्यजनक उछाल हुए हैं। कुछ समय पहले तक दो कमरे, एक रसोई, एक बाथरूम यानी 111 गज का मकान 10 लाख रुपए में आसानी से बन जाता था अब वह बढ़ कर 13 लाख रुपए तक आ गया है। इसी प्रकार आम दवाइयां बुखार, दर्द निवारक, एंटीबायोटिक की कीमतें भी आसमान चढ़ी है।
अप्रैल में जारी किए गए डाटा बताते हैं कि मार्च 2022 में खुदरा महंगाई दर फरवरी 2022 की तुलना में इतनी बढ़ी है कि 16 महीनों के उच्चतम स्तर 6.95% पहुंच गई। फरवरी 20-22 में यही दर 6.07% थी। महंगाई दर वृद्धि की तुलना पिछले साल मार्च से करें तो यह और भी चौंकाने वाला आंकड़ा है। मार्च में खाने-पीने के सामान के दामों में 7.68% की बढ़ोतरी हुई थी जो फरवरी में केवल 5.85% थी।
यह अंतर और आकड़ें खुद ही अपनी कहानी कह रहे हैं। कुल मिलाकर महंगाई की मार अब सबसे अधिक मध्यम वर्ग पर ही पड़ रहा है लेकिन इसे कौन समझाए? उनकी राहत की कौन सोचेगा? महंगाई को कैसे काबू में रखा जाए क्योकि महंगाई तो बेलगाम घोड़ा है । अब महंगाई पर अंकुश लगाने के बजाय जीवन को ही सादा और सरल करने का प्रयास हो।