जो व्यक्ति किसी अप्रिय से द्वेष नहीं करता, उसे कहते है सन्यासी: दिव्य मोरारी बापू
राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयज्ञ कर्मसन्यासयोग एवं ध्यानयोग जो किसी अप्रिय से द्वेष नहीं करता और प्रिय की अपेक्षा नहीं करता, उसे सन्यासी कहते हैं। कपड़े से कोई सन्यासी नहीं होता, इतना आसान होता तो एक, दो रूपये का रंग डालकर हर कोई सन्यासी हो जाता। आश्रम बदलने से कोई सन्यासी नहीं होता, मन बदलने से सन्यासी होता है। जैसे कपड़े में रंग चढ़ गया इसी तरह मन में भी संयास रंग चढ़ जाय, ईश्वर भक्ति, उपासना का रंग चढ़ जाय, तब सन्यास सिद्ध होता है। द्वन्द्वों से रहित होकर जीवन बिताओ। हानि-लाभ, जीवन- मरण, संयोग-वियोग, अपना-पराया, दिन-रात ये तो प्रकृति का नियम है, चलता ही रहेगा।
भगवान राम पर भी संकट आये, राजा नल पर भी संकट आये, पांडवों पर भी संकट आये, प्रहलाद, गुरु गोविंद साहब पर भी कितने संकट आये, बड़ों पर भी संकट आते हैं। लेकिन बड़े उसकी परवाह नहीं करते हैं। सामान्य व्यक्ति जरा से संकट में घबरा जाता है और जरा सी खुशी में संतुलन खो देता है। जीवन में संतुलन बनाये रखना यह बहुत महत्वपूर्ण है। अगर हम यह कोशिश करें कि हमारे जीवन में संकट न आये तो हम कभी सफल नहीं होंगे। कोशिश ये करनी चाहिए कि सुख-दुःख, जीवन में आने वाली किसी भी परिस्थिति का असर हमारे मन पर न पड़े। निर्द्वन्द्व हो जाएं। राग-द्वेष ये सब द्वन्द्व है, इसमें सम बनने की कोशिश करना चाहिए। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान वृद्धाश्रम एवं वात्सल्यधाम का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में श्री दिव्य चातुर्मास महामहोत्सव के पावन अवसर पर श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयज्ञ के पंचम दिवस ध्यान-योग का वर्णन किया गया। कल की कथा में सातवें और आठवें अध्याय की कथा का गान किया जायेगा।